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बुधवार, 8 जून 2011

अंतर

अंतर है 
मंदिर के पत्थर 
और 
रास्ते के पत्थर 
 में 
इतना ही 
एक पर 
विश्वास किया 
तुमने ...
और 
दूसरे ने 
तुम पर .......

शुक्रवार, 3 जून 2011

औरत

रचना से 
रचित का 
  सफ़र 
तय करती है 
बड़ी ही 
तन्मयता से ,
प्रेम से ,
समर्पण से ....
पर ,मंजिल 
नहीं आती 
कभी हाथ ,
आती है 
तो 
छूट जाती है 
सफ़र की 
दीवानगी में .....!