ANANYA
मंगलवार, 27 सितंबर 2011
तुम.....
तुम झूठ पे झूठ कहते रहे
मैं यकीं पे यकीं चिनती रही ....
मेरे यकीं के पुल के नीचे से
तेरे झूठ की नदी बहती रही ...
सोमवार, 19 सितंबर 2011
क्या कहूँ ... मैं ... उसे....! ! !.
मुखिया के लिए
प्रार्थना
बच्चों के लिए
कामना
जोड़ कर
दोनों हाथ
खड़ी रहती है
सुबह ,शाम .....
दिन ,महीने ,बरस
जाते हैं गुज़र
बीत जाती है
उम्र
हो जाती है
पत्थर .......
न नींव में
जुड़ता
न कंगूरे का
हिस्सा
बनती है
बस_ _ _
दहलीज़ का
किस्सा .......
तकती है
राह
नहीं कोई
गवाह
करती है
निबाह
नहीं भरती
वो आह .....
पत्नी ,
माँ के नाम से
होती है
दर्ज़
निभाती है
फ़र्ज़
क्या कहूँ...! !
मैं उसे
आती है चुकाने
वो तो
कई ........
जन्मों के
क़र्ज़ ........
सोमवार, 12 सितंबर 2011
चिंता ....?????
दीवार में
उग आये
पेड़ का
विरोध ....? ?
चिन्ता
पेड़ के पनपने
और
जगह के अभाव की नहीं
फैली जड़ों से
खुद की
दीवारों के
ढह जाने की थी ...
(" काव्य-लहरी " में प्रकाशित )
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