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शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

अमलतास ..............





अमलतास  
यौवन पर ......
गजरे में गुंथे फूल  
ओढ़ दोपहरी का घूंघट 
ढांप देते हैं 
धरा के तापित  
आँचल को .....

बिन सोचे 
बिन समझे 
बिखरने ,रौंदे जाने से 
बेखबर ...
सुवासित 
अपनी ही महक से ......

मुस्कुराते हैं 
धरा के श्रृंगार पर ......

सच ...
कितना सुखद होता है 
मुस्कुराहटों पर 
निस्सार होना ......(अनन्या अंजू )





गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

(कितना मुश्किल होता है .... )

रेत 
तपती रहे तो 
रहती है मगन ...

कभी कभी का 
बरसना ...
बढाता  है प्यास ...

कोई क्या जाने 
प्यास को पीना 
कितना मुश्किल होता है ....



    

आकाश ...


आकाश चाहत है ...कल्पना है ......उड़ान है ......पूरे आकाश को ....अपने पंजों में लाने की इच्छा .....जो अंतहीन ....कभी भाव विहीन भी .../ पिंजडा .....हकीकत है ......अवलोकन है ......अनुभवों की जमीं है .....कदम कदम नापता है ......बाहर और भीतर के द्द्वंद से जूझता हुआ ....सच से एकाकार होता है ....और असीम अनंत आकाश में ....निडरता पूर्वक विचरण करता है ....पिंजरा रहता कहाँ है ........./ पिंजड़े के अंदर से ही तो देख पाता है ....आकाशी उड़ानों की कोरी कल्पना ....../आकाश से ...ये अनुभव सम्भव नही ....पिंजड़े का भी नही .....(me as cment ...)


पियोगे गरल ......तभी पाओगे कुछ उगल .....!! होता कहाँ है बस में ....जो ले हर कोई निगल .......?? .....जिंदगी होती है सरल ......पर चाहते है सब ..महल ......!!!! 
अमित आनंद पाण्डेय के स्टेट्स पर ......२५अग्स्त १२:०६ शनिवार 


मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

दो बूँद मौन.....................



बहुत मन होता है .....
हाँ ...कभी कभी .....
कुछ कहने ..सुनने का ...
फडफडाते पंछी की तरह  
तोड़ कर पिंजरा ...
एक ही श्वास की उड़ान में  
पहुँच जाना चाहती हूं  
तुम तक ......!!!


मस्तिष्क की शिराएं  
खिंचती हैं 
सिकुड जाता है हृदय ...
चोपर (choper) पर चलते चाकू  सा  
गूंजता है स्पंदन ......

शुष्क बुदबुदाहट  
चीरती हैं होंठ .....!!!

 अंतत: ठंडी  
गहरी सांस के साथ  
छौंक देती हूं सब कुछ  
दो बूँद मौन में ....................!!!!!
(अनन्या ).......१८/९/१२ 

शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

स्वाधीनता दिवस की बधाई आज क्यूँ ......????? इसे आप को कल देना चाहिए .....आज के दिन तो भाई भाई  से अलग हो गए थे ...धरती जो अनंत है ....उसे एक टुकड़े में और बाँट दिया गया .....और नाम दे दिया सरहद ..........सरहदे जो आज भी तकती हैं राह उन खोये कदमो की आहटों का ....जो बाँध दिए गए है ...दस्तावेजों के साथ .......वो आँखे जो ...सरहद पर ...देखती हैं एक दूसरे को ...पर नही मिला पाती हाथ .....क्यूंकि मुकरर्र है वक्त ........सांझ से पहले ...बंद हो जाते हैं खुले दरवाजे ....एक भीड़ ...होती है इकठ्ठा .....बिखर जाती है धीरे धीरे ...देखती है मुड कर मायूसी से .....एक ही हवा में ...फेहराए जाते हैं ...दो परचम ... करते है बातें ....दोनो  परचम सर्वाधिकार सुरक्षित