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रविवार, 10 फ़रवरी 2013

कांगड़ी.............



बीन कर 
ख्यालों के कच्चे कोयले ...
जलने लगी थी कांगडी ...

धुखती बेसुध खुमारी में 
स्वाहा  होती सांसें 
कुछ कहती सुनती 
हवाओं की सरगोशी 
बुनने लगी 
अनगिनत पलों से ..
एक गर्माहट ...!!

ओढने लगी गर्माहट ....
अचानक तप्त गालों ने 
सोख ली ढुलकती
दो बूँदें .......
अह्ह्ह्ह्ह ...!!!
इतना ताप ..!!
कैसे सहती है कांगड़ी ......?!  

मन ..
कांगडी ही तो है 
और बर्फ को पीना 
बहुत मुश्किल ......!!!!!

(कभी कभी यूँ भी होता है ...............)

आह्वान ......!!!!!




गुलमोहर ... उदास है ....
झर जो गई थीं 
उसकी पत्तियाँ 
जिनके संग वह  जीता था 
हरीतिमा को.......!

एक सर्द झोंके का स्पर्श 
तोड़ गया 
 लम्हों की बंदिश ...!!!!

कांपते सुर .....
 दे रहे आश्वासन ..!
बरसती बूंदें ...
कर रही आह्वान ..
मानो .....,कहते हुए 
निष्प्राण में भर रही प्राण ...
कि ,
 फिर खिलेंगी पत्तियाँ 
हंस पड़ेगा गुलमोहर 
जब दहक उठेगे ....
फिर से .. 
सिंदूरी फूल....
जेठ की दोपहरी में ...!!!


(अंजू अनन्या )(4 .2 .2013)



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