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गुरुवार, 28 मार्च 2013

क्षणिका ..प्रेम (२)



तुम 
नही जता पाते प्रेम 
मेरे प्रति ...
क्यों ..? 
 क्यूंकि 
नही किया तुमने कभी प्रेम ...
चंद शब्दों से 
लिख देते हो इतिहास ...../
पर प्रेम तो 
 वर्तमान है ....
 है ना..... !!!! 
(अंजू अनन्या)

क्षणिका ...प्रेम ...(१)



(१)........
उसने टूट कर
किया था प्रेम ..!
इतना टूटा
कि किर्चियों की चुभन
रह गई बाकी ...
अब किरची दर किरची
निकालता है जिस्म से
और बींध देता है
उस प्राणमयी टहनी में ....
(रिसते प्राण नही दिखते )
कहने को
फूलों से बहुत प्रेम है उसे
सहेजने का हुनर जानता है ...
पर ...
नही समझ पाता
प्रेम की  पीड़ा को .....!!!
(पत्तियां बिखरती रहती हैं )........

(अंजू अनन्या )

रविवार, 17 मार्च 2013

शीर्षक से परे ..........!!!!!!




स्थापित ईश्वर
चला गया ......
खंडित हो गया था मन ..!

कर दिया प्रवाहित 
बहती धारा में ..!

ईश्वर 
देवघर में रहता है 
खंडहरों में नही .....!!!

(अंजू अनन्या )


( ईश्वर प्रेम हो सकता है ...'प्रेम' ईश्वर का ही तो दूसरा नाम है .......)

मंगलवार, 12 मार्च 2013

लम्बी बात ..............



    
 कभी कभी 
 कितनी लम्बी 
 हो जाती है बात ..
कि शब्द 
जाते है खो .. ..
 अर्थ 
देते है बदल ,
 मायने उस बात के .....
बात और 
 बात के बीच की 
लम्बाई को 
 नापना भी
होता है 
नामुमकिन  ....
क्यूंकि  आसमान का 
नही होता 
कोई सिरा .....
बस रात बाकी की तरह 
अंत में 
बात तलाशती है 
फिर एक 
नया सिरा .......