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बुधवार, 2 जुलाई 2014

बदलते कवर .....

छ्पने  की चाहत में 
'वो' लिखता ही गया 

इतना लिखा कि 
' हो गया किताब '। 

संस्करण निकलते हैं 
जिल्द ( कवर ) बदलती है 
और कीमत रहती है 
बढ़ती-घटती ....... . 

भटकता रहा कभी 
इस हाथ ,कभी 
उस हाथ.…… 

चक्करघिन्नी सा 
रहता है घूमता 
उन्ही शब्दों (किरदारों ) 
 के साथ.…। 

आह…… !!!
नही होना मुझे 
कोई ऐसी किताब 
छोड़ दिया लिखना 
सवाल - जवाब के 

किसी तयशुदा 
हिसाब के साथ. .......