मैं ..लिखती
कहाँ हूं ...?
जब भी चाहा
कुछ लिखना
कहाँ , लिख पाई
लिखा जाता है
जो भी ..
होता है
उसकी रजा से ..
वो बोलता
मैं सुनती हूँ
और
कलम
खुद ब खुद
बिखर जाती है
खाली पन्नों पर ....
यूँ मिट जाता है
फासला
कलम -कागज
मेरे -उसके
बीच का .....
(" काव्य-लहरी " में प्रकाशित )
(" काव्य-लहरी " में प्रकाशित )