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सोमवार, 26 अगस्त 2013

मैं लिखती कहाँ हूँ .........

मैं ..लिखती
 कहाँ हूं ...?

जब भी चाहा 
कुछ लिखना
कहाँ , लिख पाई 

लिखा जाता है 
जो भी ..
होता है 
उसकी रजा से ..

वो बोलता 
मैं सुनती हूँ 
और 
कलम 
खुद ब खुद 
बिखर जाती है 
खाली पन्नों पर ....

यूँ मिट जाता है 
फासला 
कलम -कागज 
मेरे -उसके 
बीच का .....
(" काव्य-लहरी " में प्रकाशित )


4 टिप्‍पणियां:

  1. लिखती तो हूँ,पर वो कहाँ लिख पाती जो मन के दराजों में है

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  2. भावनाओँ को अभिव्यक्त कर इतना सहज नहीँ होता है । फिर भी आपकी रचनाएँ तो पढ़ने को मिल जाती हैं । बधाई ।

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