'अर्थ '
कहीं खो गए
या कहूँ कि
बाज़ार की चकाचौंध में
दिखते हैं
जुगनू जैसे .....
बचे हैं तो ' शब्द '
वो भी बिकते हैं
आज कल
बड़े बड़े बैनरों की ओट में
पहने जाते हैं
कीमती लिबासों के रूप में
जो बदलते रहते हैं
मौसम ,जगह और
परिवेश के अनुसार .................
((" काव्य-चेतना " में प्रकाशित )
((" काव्य-चेतना " में प्रकाशित )
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार-8/09/2013 को
जवाब देंहटाएंसमाज सुधार कैसे हो? ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः14 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबचे हैं तो ' शब्द '
जवाब देंहटाएंवो भी बिकते हैं
आज कल
बड़े बड़े बैनरों की ओट में
लाजवाब , शानदार |
अतीव सुन्दर एवं सार्थक रचना । बधाई । सस्नेह
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