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मंगलवार, 15 नवंबर 2011

कुछ नज्में इमरोज़ के नाम ...........

बिक गया अमृता का मकान .......
 ये महज कोई कल्पना ,या मन बहलावा नहीं जिसे शब्दों में सराहा या नाकारा जाये ,ये एक ऐसी हकीकत है जिसका दर्द वही समझ सकता है जो अमृता को चाहता है,सिर्फ अमृता को ....उसके रुतबे ,उसके नाम ,उसकी साहित्यक पहचान से परे .....सिर्फ उसे ,उसकी रूह को ,उसके मन की उन दशाओ को,उस सत्यता को जिसे जीवन भर उसने जिया ... जिसने महसूस किया होगा उसे शब्दों का होश कहाँ .......यूँ लगा ....


........(1)............
मेरी आँख में पलता सपना टूट गया 
जैसे कोई अपना छूट गया,
 अब ढूँढने को दुनिया हो गई ,
मंदिर  में स्थापित मूर्त खो गई...
(30.8. 2011 )
 ~~~~~~~~~~~~~~*~~~~~~~~~~~~~~~*~~~~~~~~
साहित्य जगत में खलबली है ,सवालों की बारिशें  हैं , हर  नजर इमरोज़ की मोहब्बत पर सवाल करने को आतुर है..???????????.. पर इमरोज़ किससे साँझा करे..? और क्यूँ करे ?जब ये मकान घर बना ,सवाल तब भी उठे थे... दर्द तब भी मिला था,पर हौंसला था....आज मकान (घर नहीं)बिका तो फिर वही सवाल ...... 
आखिर क्यूँ......?????  इस क्यूँ का जवाब ,कभी किसी सवाल के पास नही होता ....हाँ इमरोज़ जी की मनोस्थिति के बारे में इतना ही कह सकती हूँ.... 

              (इमरोज़ .....)
(2)
एक झरना फूटा
चीर गया धरती का सीना 
ज़ख्म था गहरा 
कैसे दिखता 
कुछ पल में ही 
झील हुआ ...
 सुबह गुजारो 
शाम बिताओ, 
मिटटी डालो ,
कंकर फेंको ,
शब्दों का जितना,
जाल फैलाओ...
वक़्त गुजारेंगे, सब 
दिल बहलाएँगे, 
फटे हुए उस सीने को
मगर, कहाँ....
सिल पाएंगे ......
(10 नवम्बर 2011) 

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(3)
 "नही बिका करते कभी घर
    बिका करते है मकान 
    तू है तो मै हूँ 
          मै हूँ तो ये जहान......".
          
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( 4 )
"घर रूह से होता है 
जिस्म होता है एक मकान 
मिटना लाजिम है जिस्म का 
फिर रूह क्यूँ कर हो परेशान" 

(11.11.2011 )


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बहुत बवाल उठ रहा है ,कई सवाल हो रहे है ,सब जागरूक हो रहे है, लेकिन ईंट गिरने के बाद ,धरोहर तो वो उस वक्त से था ,जब से अमृता इमरोज़ ने इसे बनाया ,उसके जीते जी किसी को ख्याल न आया ,उसके जाने के बाद भी ,5 साल 5 महीने  बीत गए कभी किसी ने ये कदम नही उठाया ...........आज जो ये हवा चली है ,ये पहले भी उस घर का पता जानती थी ,पहचानती थी उन साँसों की खुशबु को ,जर्रे  जर्रे  में समाई अमृता के वजूद के लफ़्ज़ों को ....फिर ये चेतना आज क्यूँ ..????
क्या इसलिए के आज वो मकान जमीन हो गया ...?  
ईंटे गिर गई तो साहित्य जगत पशेमां हो गया .....?
एक  बहुमूल्य निधि के खोने का एहसास हो गया ..........?
शायद
यही दुनियावी हकीकत है ......


जब जिस्म मिटटी हो जाते हैं तो उनके "नाम" का गुणगान होता है 
जब भूत पिशाच हो जाती है तो "रूह" का गुमान होता है, 
जब संपतियां लुट ,बिक  जाती हैं तो धरोहरों का ख्याल आता है,
जीता जागता इंसान सदा से  जग में अनजान होता है ...
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जब ईमान की ईंट से एक छत का निर्माण हुआ ,मकसद तब भी एक  "घर" था ,आज ईंटे बिकी ,तब भी मकसद, अमृता की जीती जागती रचनायें है ...और इमरोज़ का "सुच्चा मान"अमृता ही नही उससे जुडी हर शै है...जिसे वो अपनी आत्मा से चाहते है...बिल्कुल 
"राधा " की तरह 
बहुत कुछ है लिखने को ,भावों की एक नदी बह रही है ,प्रश्न है पर स्वयं से.....इस सांसारिक व्यवहार से ........
आज इतना ही ,कुछ पल पहले बात हुई इमरोज़ जी से उसका जिक्र फिर करूंगी .....

30 टिप्‍पणियां:

  1. अंजू जी ,

    बहुत भावमयी प्रस्तुति .. पढते पढते अमृता -इमरोज़ मई हो गयी ... आगे का इंतज़ार है .

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  2. बहुत ही भावपूर्ण और संवेदनशील..... रचना.....

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  3. जब जिस्म मिटटी हो जाते हैं तो उनके "नाम" का गुणगान होता है
    जब भूत पिशाच हो जाती है तो "रूह" का गुमान होता है,
    जब संपतियां लुट ,बिक जाती हैं तो धरोहरों का ख्याल आता है,
    जीता जागता इंसान सदा से जग में अनजान होता है ...

    बहुत भावपूर्ण पोस्ट है आपकी.......ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी|

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  4. बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.
    दिल को कचोटती हुई.

    आपके ब्लॉग पर आकर अदभुत अहसास हुआ
    एक तडफ का जो आपने खूबसूरती से अपनी
    प्रस्तुति में उकेरी है.

    समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.
    हार्दिक स्वागत है आपका.

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  5. बहुत बढ़िया ...एक संग्रहणीय भावमयी पोस्ट ......

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  6. आपकी पोस्ट पर आकार अच्छा लगा बधाई ..
    आप बुत अच्छा लिखती है

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  7. घर नहीं रहा ... बहुत कुछ बदल गया , पर ये नाम इनके खुले ख्याल आज भी हैं - हौज़ ख़ास की मिटटी से लेकर ग्रेटर कैलाश तक .... उनके चाहनेवालों की कलम तक ...

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  8. bahut sateek aur sahaz abhvyakti lagi aapki...sach hi hai..ham log aise maamlon men aksar kumbhkarni neend se nahi jaag pate...
    bahut bahut acchha lagaa apke blog par aakar.

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  9. बहुत ही संवेदनशील लिखा है आपने।

    सादर

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  10. बहुत ही अच्छे भाव गुंथे हैं आपने नज्मों में...
    दिल तक जाती हैं प्रभावी पंक्तियाँ....
    सादर...

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  11. भावनाओं को बहुत ही खूबसूरती से शब्‍दों में उतारा है आपने ...जिनके अहसास दिल तक जाते हैं ..भावमय करती यह प्रस्‍तुति ।

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  12. संवेदनाए .... कितनी अलग अलग सोच होती है कुछ होने पे .. पर जिसके दिल पे गुज़रती है वही जानता है ... जो भी हो ऐसा नहीं होना चाहिय्र था ...

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  13. इमरोज़ जी की संवेदनाओं को पूरी सच्चाई से उकेरा है आपकी कलम ने...
    घर और मकान निश्चित ही दो अलग चीज़ें हैं... मकान धूल धूसरित हो सकते हैं पर घर मिटते नहीं!

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  14. शुक्रिया संगीता जी आपके इस अहसास से ये पोस्ट सार्थक हो गई

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  15. सुषमा जी, इमरान जी भावों के अहसास के लिए आभार ,जो पंक्तियाँ आपको पसंद आई ,वो कड़वा सच है ...जो आज की बात नही ...घर में ,समाज में
    राष्ट्र में.....सब जगह लागू होती है बात शिव की हो ,ग़ालिब की ....तागोरे की हो या महादेवी वर्मा की

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  16. मोनिका जी आप का ब्लॉग पर स्वागत है आप को अच्छी लगी ये पोस्ट शुक्रिया

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  17. संजय जी,यशवंत जी ,ममता जी ,पोस्ट की सराहना के लिए धन्यवाद

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  18. अखिल जी ,हबीब जी ,भाव समझने का शुक्रिया ब्लॉग पर आने का हार्दिक आभार
    सदा जी ,भाव दिल तक पहुँच गए रचना सार्थक हुई.ब्लॉग पर यूँ ही बने रहिएगा इसी के साथ शुक्रिया भी

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  19. वो सब आज भी है ,घर भी ....!रश्मि जी ,उससे यादें जुडी है ,उन यादो की साँसे धडकती है जहाँ ,ये वो घर है ग्रेटर कैलाश ....शुक्रिया प्रतिक्रिया के लिए

    जवाब देंहटाएं
  20. वो सब आज भी है ,घर भी ....!रश्मि जी ,उससे यादें जुडी है ,उन यादो की साँसे धडकती है जहाँ ,ये वो घर है ग्रेटर कैलाश ....शुक्रिया प्रतिक्रिया के लिए

    जवाब देंहटाएं
  21. बहुत ही संवेदनशील लिखा है .......

    जवाब देंहटाएं
  22. शुक्रिया राजेश जी ,इस सफे को आपने पढ़ा ,क्यूंकि ये पोस्ट मेरे लिए अपनी हर पोस्ट से ,कहीं अधिक अहमियत रखती है .और आपका इस पोस्ट पर आगमन भी मेरे लिए उतने ही मायने रखता है .इस ब्लॉग पर आपके हस्ताक्षर का तहे दिल से (बिलकुल इस पोस्ट जैसा जिसमे कोई मिलावट नहीं )शुक्रिया ......
    अदभुत.....! के लिए धन्यवाद

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  23. बहुत ही भावपूर्ण और संवेदनशील..... रचना.....

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  24. मोहब्बत कब दरो-दीवार मे बंधी
    मोहब्बत तो सदा बियाबानो मे रही
    अब मिट्टी को घर भले ही कह लो
    मोहब्बत तो सदा रूह की मीनारों मे चिनी

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  25. phir ek baar -

    कल भी मैं इमरोज़ था
    आज भी इमरोज़ हूँ
    कल भी अमृता का था
    आज भी उसीका हूँ
    घर मेरा उसके दिल में था
    उसका घर मेरे ख्यालों में
    अब जो नहीं बिका - उसका नाम ही रख दो हौज ख़ास k 25

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