बीज
जब बोया
था एक भाव ...
अंकुरित ,
पल्लवित ,और फिर
हो गया
फलीभूत
एक सुंदर
रचना में ....
निहारा
संवारा
फ़ैल गई वो
छाया बनकर ....
पक्षी
चहचहा उठे
बूँदें
थिरकने लगी
पत्तियां
जगमगाने लगी
और, हवाएं
महक उठी..
उस मीठी
खुशबू से ....
इधर
कई दिन से
कुछ सेहतमंद लोग
हो गए है
जागरूक
जब देखो ,तब
उठा लेते है
पत्थर
ढांपने लगे है
पैरों तले की
जमीन .........
कौन समझाये
????????
पक्के फर्श पर
नहीं उगा करते
पेड़......
और फैली जडें
उखाड़ फैंकती है
पत्थरों को भी ..................
("काव्य-लहरी " में प्रकाशित )
फैली जडें उखाड़ फैंकती है पत्थरों को भी ..................
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही!
सुन्दर रचना!
पक्के फर्श पर
जवाब देंहटाएंनहीं उगा करते
पेड़......
और फैली जडें
उखाड़ फैंकती है
पत्थरों को भी .......सच्चीईईईईईईईई
कुछ सेहतमंद लोग
जवाब देंहटाएंहो गए है
जागरूक
जब देखो ,तब
उठा लेते है
पत्थर
ढांपने लगे है
पैरों तले की
जमीन .........
बेहतरीन,शानदार,लाजवाब...........हैट्स ऑफ इसके लिए|
बहुत ही अच्छी अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंबेहद .....ख़ूबसूरत....बहुत ही अच्छा....वाह...सब कुछ ...जैसे.....
जवाब देंहटाएंअनुपमा जी ,रश्मि जी,सुषमा जी शुक्रिया ....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इमरान जी ,ये पंक्तियाँ आज की हवाओं का रुख है ....हैट्स आफ ऐसी कोई बात नही ,आपने पढ़ा,सोचा यही पोस्ट के लिए काफी है .....फिर भी इसके लिए बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंभावों का समंदर है यह रचना ... अच्छी लगी .
जवाब देंहटाएंऔर फैली जडें
जवाब देंहटाएंउखाड़ फैंकती है
पत्थरों को भी ..................
जज्बा बहुत पसंद आया ...
शुभकामनायें ...
वाह ...बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति पढकर मन प्रसन्न हो गया है.
संगीता जी की हलचल का वास्तव में नायब हीरा है आपकी यह सुन्दर प्रस्तुति.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
पक्के फर्श पर
जवाब देंहटाएंनहीं उगा करते
पेड़......
और फैली जडें
उखाड़ फैंकती है
पत्थरों को भी
बिलकुल सही कह रही हैं आप।
सादर
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति .......
जवाब देंहटाएंगहन सोच और सशक्त अभिव्यक्ति अंजू जी ! इतनी सामयिक एवं सारगर्भित रचना के लिये बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंअंजू जी,..
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना के लिए बहुत२ बधाई,...
आप सबका थे दिल से शुक्रिया ,अभिवादन ....
जवाब देंहटाएंपक्के फर्श पर
जवाब देंहटाएंनहीं उगा करते
पेड़......
और फैली जडें
उखाड़ फैंकती है
पत्थरों को भी ..................
anupam......wah.