तुम्हारी याद
कोई याद ही नही
है धरती का वो कोना
जो अक्सर
बिन मौसम की बरसात से
हो जाता है गीला......
और फिर
महक उठती है उसमे
एक सोंधी सी खुशबू
तुम्हारी चाहत की.....
अनायास
कदम बढने लगते है
और फिर
भींच लेती हूँ
दोनों मुठियों में
उस अनदेखी,
अनजानी,
पर एहसासों में उतरी
उस खुशबू को-------
लौट आती हूँ
उन्ही पाँव
फिर से
तपती धूप में.........