रूह में उतरा है सूरज इन दिनों ...
बिखरे पत्तों को समेटती है जब हवा ...
खनकती है कोई आवाज़ इन दिनों .....
बचा कर आसमां से नजर ,खिड़की से
उतरता है चाँद ,मेरे घर इन दिनों......
न दरिया , न पत्थर ,न ही पानी ..
फिर भी आँखों में है भंवर इन दिनों ....
ख्याल उसके की पाकीज़गी तो देखिये ....
खुदा में भी आता है ,वो नजर इन दिनों ......
मिला जब वो ,खुदी में मिल गया .....
तलाश में जिसकी गुमशुदा थे इन दिनों .....