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सोमवार, 29 जुलाई 2013

आँख का बादल...............


हाँ ..
होता है कभी
घुटन जो 
घुटती भी नही
उमस 
चिपचिपी सी
ना उखडती
सूखती भी नही
..............

दम घोंटू
ना दम निकले
ना आये श्वास
....................

आँख का बादल
कोई आस
घुल जाये तो
उदास
बरस जाये तो
प्यास
बिखर जाये तो
बदहवास .....अह!


गुरुवार, 18 जुलाई 2013

अपेक्षा के दायरे ....


नही
जुड़ने दूंगी
उस हद तक
इस आईने को .....

हो सके
प्रतिबिम्बित
छाया मेरी
अपेक्षा की ...

इसलिए
रखती हूं
हथेलियों के बीच
एक पत्थर
एक कील नुकीली ...

भींच लेती हूं
मुट्ठी
जोर से
जब भी
सिर
उठाती हैं
वो ........

कटी लकीरें
छिले हाथ
कब देते हैं
गवाही
ऐसे जख्मों की ........

[{( अंजू अनन्या )}]

रविवार, 14 जुलाई 2013

तिनका तिनका ...आग.....


वो तिनके 

चुने थे जो 

रूह ने  

आँखों से .....



हरी पत्तियों के 

बीच कोई  बसेरा 

था नदी पार 

इक सवेरा  ....


अह! बिखेर दिए 

अपने ही हाथों 

उस रोज़ की 

एक आँधी में .....


अब 

चुनना होगा 

तुम्हें 

अपने हाथों से ...


मेरी अंतिम सीढ़ी 

अंतिम बिछोने की 

खातिर .......!!


{ सुना है आग की ..तिनकों से होती है अटूट दोस्ती ........

तभी तो देती  है उस वक्त भी साथ ......

जब नही रहता कोई हाथ ..... निभाने के लिए ......}

मंगलवार, 9 जुलाई 2013

धरती ...बादल .......बरसात ..........{ दो कवितायें }



कल ,
बरसात में 
धरती का इक टुकड़ा 
 गया था भीग ..... 
बहुत  खुश थी 
उसकी सौंधी खुशबू 
समेटने में ........

आज 
यकायक ,बरस पड़ा 
सूरज का आक्रोश 
उसी टुकड़े पर ...
नमी हो गयी गायब 
और वो 
गिनने लगी द्र्रारे 
पपड़ाई जमीन पर ..................

{.....अनन्या .....}

..............................................................................................

                             (२)          


देख , बादल को  
भटकते ,
फैला दी बाहें  
धरती ने ,और 
दे दी पनाह 
अपने आँचल में

......

अगली सुबह 
देखा 
मुस्कुरा रहा था 
नीला आकाश 

लेकिन 
नम था 
धरती का आँचल 
शायद 
रात भर रोने के कारण ...........!!





[( अनन्या ) ...
कविता संग्रह "काव्य लहरी " से ]

गुरुवार, 4 जुलाई 2013

आखिरी आहुति ...


हवनकुंड में 
प्रज्वलित अग्नि 
बुझने को है .....

पर आहुतियाँ बरकरार ...

इससे पहले ,हे अग्निदेव 
तुम हो जाओ शांत 

लो ,कर दिया मैंने 
आखिरी आहुति का 
होम 
पात्र के साथ ........

{...अनन्या ....}

यूँ ही ...............{तीन लघु कवितायें }


{.....सड़क ....}

आज फिर 
उसी खाई में 
गिरा था 
एक पत्थर 
किसी ठोकर से .......

सड़क 
सिहर उठी 
तेज गति लिए 
लापरवाही से 
पड़ते पाँव की 
कल्पना मात्र से ...............!!

{ वक्त और स्थितियां खुद को  दोहराती क्यूँ हैं ....} 

...................*......................*..................................*........................
                                              [२]}

सपने 
फूल से .....

बिखरे 
धूल से........

चुभेंगे 
शूल से ......... 

{ यूँ ही सी कुछ बातें ....कह जाती कुछ आते जाते ....< अनन्या >}

..............*.........................*....................................*........................
[३]

आदमी 
हो जाता है 
कितना रहस्यमयी 
जब रख देता है 
कहकहों के बीच 
ज़िन्दगी की किताब ,खुली .......

लोग देखते रह जाते हैं 
कभी कहकहों को 
तो कभी  
खुली किताब को ...............!

{........हंस कर उड़ा देना हर फ़िक्र को ......ना लाना जुबां पर दर्दे ज़िक्र को .......}

[रिश्ते तो ...रंग हैं ...../ और बदलते रहना .....आदमी की फितरत ......]





   

बुधवार, 3 जुलाई 2013

संधि बेला .............


बुझने से पहले
अकसर  
हो जाती है तेज़ ,
दीये की टिमटिमाती लौ......
शायद
कुछ ऐसी ही होती है
पुराने और नए वर्ष की
संधि् बेला ................
जहाँबीता वर्ष
करता है आकलन
तीन सौ चौसंठ दिनों का
औरजोड घटाव के बाद
कर लेना चाहता है दर्ज
अंतिम दिन........
बन जाए जो ‘अर्थ
पूरे वर्ष का 
या फिर 
करता है कोशिश
संवारने की ,
पुराने लिबास को ....
और फिर ,
सपनीले धागों 
आशाओं के रंग से
बुनता है 
एक ‘नया लिबास
जो बेहतर हो
पुराने लिबास से .....
पर ,क्या 
ऐसा होता है...?
ये सवाल
हर साल
इसी संधि् बेला पर
बन जाता है
प्रश्न चिन्ह’ 
और मैं
खोजने लगती हूँ 
उसका हल........

यही कहोगे ना ...........

"तुम तो मुझे भूल ही गई ..."
कितने दिन से बात भी नही की ...!!!
यही कहोगे ना ......जानती हूं .....

पर नही कह पाऊँगी कुछ ...
सिवा इसके 
"हाँ ,बहुत कीमती रहे होगे तुम .."
ज्यादा सम्भाल कर रख दिया तुम्हें ....
और तुम तो जानते हो ना ....
अक्सर ज्यादा सम्भाली चीज़ें /यादें 
एन मौके पर ..
ढूँढने से भी नही मिला करती .....!!!!

बेवक्त मिलना भी तो
कसता है तानों का शिकंजा .....
बस यही सोच कर ....
खींच लेती हूं हाथ ....
मूँद लेती हूं आँख ......
रख आती हूं कहीं 
गहरी सम्भाल और 
भूल जाने के बहाने के साथ ....!!
(अनन्या अंजू )

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