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गुरुवार, 12 सितंबर 2013

नन्ही बूँदें ................

जड़ों  के बीच से 
काट दिया पेड़ 
मुरझा गया था 

जड़े लगी थी सूखने ----

 हवा के साथ 
कोई बादल आया 
और 
बरस गया ----

जाने क्या था 
नन्ही बूंदों में ---!

वो ' जल ' ही रहा होगा ---- 
समझ गया जड़ों की प्यास 

दिखाई देने लगी है 
हरीतिमा 
और कोंपले 
'हैं ' मानो  
प्रतीक्षारत -------




शनिवार, 7 सितंबर 2013

परिवर्तन .....

'अर्थ ' 
कहीं खो गए 
या कहूँ कि
बाज़ार की चकाचौंध में 
दिखते हैं 
जुगनू जैसे .....

बचे हैं तो ' शब्द '
वो भी बिकते हैं 
आज कल 
बड़े बड़े बैनरों की ओट में 

पहने जाते हैं 
कीमती लिबासों के रूप में 
जो बदलते रहते हैं 
मौसम ,जगह और 
परिवेश के अनुसार .................

((" काव्य-चेतना  " में प्रकाशित )