अंतर है
मंदिर के पत्थर
और
रास्ते के पत्थर
में
इतना ही
एक पर
विश्वास किया
तुमने ...
और
दूसरे ने
तुम पर .......
रचित का
सफ़र
तय करती है
बड़ी ही
तन्मयता से ,
प्रेम से ,
समर्पण से ....
पर ,मंजिल
नहीं आती
कभी हाथ ,
आती है
तो
छूट जाती है
सफ़र की
दीवानगी में .....!