मंगलवार, 28 मई 2013
सोमवार, 27 मई 2013
गुरुवार, 16 मई 2013
फिंगर्स क्रोस्ड
जब भी होती हूँ
स्वयंम के साथ ...
फिंगर्स क्रोस्ड की मुद्रा में ...
जुड जाते हैं हाथ .....
श्वास नि:श्वास का बहाव ..
बनता
अनहद का भाव ...
तीव्र स्वर से खटखटाता
विशुधि द्वार .........!!
धुरी पर घूमता
स्पंदन के साथ ...
गटकता है सांस ....!!
हवनकुंड सी तापित इन्द्रियाँ
दृष्टि का मंत्रोचार ....
जागृत का आह्वान ....
प्रकट होता पुंज अपार ...
भृकुटी के मध्य द्वार
फैलता शून्य अपार ...
मिल जाता सह्स्त्र्द्वार.....!!!!!
गुरुवार, 9 मई 2013
व
जू
द
हम थे, हम हैं, हम होंगे
या पिफर लेंगे जन्म
ऐसा मानते है हम
शास्त्राों से सुनकर ण्
तो राम थे,
राम हैं, और पिफर
वो भी होंगे
इसी लोक में
ऐसा क्यूँ नहीं मानते
क्यूँ उछालते हैं किसी बात को,
क्यूँ जोड़ते है भावनाओं से,
क्यूँ तलाशते हैं सबूत
उन सबके वजूद का
---
जबकि हम, आज तक
नहीं तलाश पाए,
अपना ही वजूद
इस ब्रमाण्ड में
भोली आस्था की नींव पर
क्यूँ बनाते हैं दीवारें
कभी जन्मभूमि तो
कभी राम सेतु के नाम पर,
जबकि अपने ही घर में
अपने ही पालने वालों की
हर निशानी को, बहा देते हैं
गंगा में
या पफेंक देते हैं, बेकार समझकर
तसल्ली के लिए,
कहते हैं खुद से, कि ‘वो’
हमेशा हमारे साथ है
क्योंकि
हम ‘‘उन्हीं’’ का अंश है
तो पिफर ‘वो’
जो सबका है
सब ‘जिसके’ अंश हैण्ण्
क्यूँ रख दिया है उसे
अलग थलग
एक अंध्ेरे कोने में,ण्और
उसकी महत्ता के लिए
पूजते हैं उसकी निर्जीव
निशानियों को,
जबकि बहा देते हैं लहू
उसी के सजीव अंशों का
किसी ना किसी
धर्मिक संवेदना की
आड़ में,
अपने निहित स्वार्थों की
पूर्ति हेतु ।
सर्वाधिकार सुरक्षितकुछ रिश्ते .....होते हैं बहुत खूबसूरत...........!!!!!!!!
कुछ रिश्ते .....
होते हैं बहुत खूबसूरत.......!
हो सकता है
मेरी ये बात ...
तुम्हें नागवार गुजरे .....
ये भी हो सकता है ...
तुम ...जड दो कोई पैबंद
मेरे झूठे होने का ....
पर सुनो ..!
मैं उस पैबंद पर
चिपका दूंगी ...एक शीशा
और ...टांक दूंगी ...
उसके इर्द गिर्द ...
कुछ मोती और सितारे .........(१)
हो सकता है
मेरी ये बात ...
तुम्हें नागवार गुजरे .....
ये भी हो सकता है ...
तुम ...जड दो कोई पैबंद
मेरे झूठे होने का ....
पर सुनो ..!
मैं उस पैबंद पर
चिपका दूंगी ...एक शीशा
और ...टांक दूंगी ...
उसके इर्द गिर्द ...
कुछ मोती और सितारे .........(१)
हो सकता है ....
सुई की नोंक से
कुरेद ......
खींच कर धागा
उधेड़ दो कोई सीवन
खुले सिरे...
बन जाये भद्दापन ....
झांके नंगापन .....
दे दूंगी नया रूप
नया आकार ....
जो जायेगा संवार ........
सुनो !
दोनों सिरों को जोड़ती
मैं बांधूगी एक डोरी ....
जैसे गोटा किनारी ........(२)
सुई की नोंक से
कुरेद ......
खींच कर धागा
उधेड़ दो कोई सीवन
खुले सिरे...
बन जाये भद्दापन ....
झांके नंगापन .....
दे दूंगी नया रूप
नया आकार ....
जो जायेगा संवार ........
सुनो !
दोनों सिरों को जोड़ती
मैं बांधूगी एक डोरी ....
जैसे गोटा किनारी ........(२)
हो सकता है तुम ......
तेज धार से
कतर डालो
छोटी छोटी कतरनों में ........!
फिर भी ....
एक एक कर ...
जाउंगी लपेटती ........
और बुन लूंगी
उस गोले से ....
एक आसन ..पाकीज़ा ..!
सुनो ...!
रख मंदिर में .....
कर लूंगी ध्यान .....
पा जायेगा पहचान .....
होकर के मुक्तिगान ......!!!!! (३)
तेज धार से
कतर डालो
छोटी छोटी कतरनों में ........!
फिर भी ....
एक एक कर ...
जाउंगी लपेटती ........
और बुन लूंगी
उस गोले से ....
एक आसन ..पाकीज़ा ..!
सुनो ...!
रख मंदिर में .....
कर लूंगी ध्यान .....
पा जायेगा पहचान .....
होकर के मुक्तिगान ......!!!!! (३)
--अंजू अनन्या --
मंगलवार, 7 मई 2013
शुक्रवार, 3 मई 2013
रंग ......................
बेशक रंग नही है मेरे हाथ में ....
कुछ स्वप्न तो है भर आँख के ....
जब जब हुई है यूँ ही सी बौछार ...
महके है फूल टेसू और पलाश के ................
रंग वही जो रंग दे मन ..........!!!!!!!!!!!!!
~~~~~~~~~~~~~~(१) ~~~~~~~~~~~~~~~~~
धुँधलाने लगे है रंग ...फिर भी
चांदनी सा कोई रहता है संग...!!!
~~~~~~~~~~~~~~`२~~~~~~~~~~~
~~~~~~~~~~~~~~(१) ~~~~~~~~~~~~~~~~~
धुँधलाने लगे है रंग ...फिर भी
चांदनी सा कोई रहता है संग...!!!
~~~~~~~~~~~~~~`२~~~~~~~~~~~
अपेक्षा ...............
अपेक्षा के धरातल पर
निर्भरता की सीढ़ी ...
चेतना संभाल कर रखे
कितना ही पाँव
जड़ता आती ही जाती है
हर सीढ़ी के बाद ....
..........
आखिरी शिखर पर
बस मोमेंटो सा
रह जाता है नाम ....
जरूरी है चेतना की सम्भाल
जैसे अधखिली पतियों को
सहेजता है गुलाब ...............!!
{वेदना जब अहसास में उतरती है ....तो सम हुए बिना नही रहती ....../// एहसास ही मृत ( जड़) हो जाये तो अलग बात है }
~~~~अंजू अनन्या ~~~~~~~
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