'दलित' बहुत ही आम सुनने में आने वाला शब्द , जिसके मायने नही पता किसी को , बस सिर्फ एक पर्याय हो गया है आज हर क्षेत्र में योग्यताओं को धकेल कर उनकी जगह हथियाने का।
किसी वक़्त का शोषित , बराबरी का दर्ज़ा मांग कर आज खुद शोषण करने पर उतारू है। फर्क क्या रहा। अगर वास्तव में उसने शोषण के दर्द को समझा होता और वो खुद को इतना सक्षम मानता की वो किसी से कम नही तो आज वो चंद कागज़ के पुर्ज़ों के बल पर खुद को कमतर न आँकता।
बराबर या समता के मायने क्या है जहां कोई भेद न हो सब एक से।
हाँ ये समता आयोजनो में खाने की टेबल पर मिल जाएगी जनरल कहि जाने वाली संख्या के घरों में एक साथ ठहाके ,मित्रता यहां तक की रिश्ते नाते ,खाना -पहरावा -स्कूलिंग -सब जगह बराबर एक थाली में ....
लेकिन नौकरी ,पदोन्नति ,या फिर शिक्षा के मामले में ये 'दलित ,ओबीसी जैसे ' परचम हाथ में लेकर अलग थलग खड़े हो जायेंगे, हमारा हक़ कहकर ……????? ये हक़ की मांग नही ये स्वार्थ है ऐसा स्वार्थ जिसके चलते वे दुर्योधन हो गए है और सरकार गांधारी और कानूनं तो धृतराष्ट्र है ही। ।जैस दिखाओ वैसा देखने लगेगा अपना मूल अस्तित्व भूल , जो जैसा इंटरप्रेट कर दे वही ,या जिसकी लाठी उसकी भैंस ....
हैरानी की बात है कि इतने आरक्षण के बाद भी , इतने वर्षों में आप दलित से उपर नही उठ पाये ,बल्कि और दलित हो गए। ये कैसा विकास कि हर साल सबसे आगे ज्यादा हासिल कर भी पिछड़ापन बरकरार।
ऐसा तो नही होता न।
सच तो ये है आप जनरल होना ही नही चाहते। येन केन प्रकारेण बस हासिल करना चाहते है.।
आज कहीं न कहीं मित्रता बराबरी की थोडीसी गुंजाइश बाकी है। लेकिन आने वाला वक़्त आपको इतना अलग कर देगा की आप उसी बीते वक़्त में जा खड़े होगे।
आप का ये स्वार्थ ,ये लोभ एक दिन आप को ही निशाना बनाएगा। यकीन जानिए वो दिन आएगा। . क्यूंकि क्षमता के बल पर कुछ पाना सही है पर
एक भिखारी के करोड़पति होने की खबर थी। ।भिख मांगता था। इससे ज्यादा पिछड़ापन क्या होगा की वो फूटपाथ पर सोता था। करोड़ का मालिक होकर भी वो भिखमंगा था। क़्युङ्कि उसने अपनी पहचान यही मुक़र्रर कर ली थी और वो नही छोड़ना चाहता अपना लेबल। । जब बिना पढ़े मेहनत किये ।कुछ मिल रहगा हो तो कौन चाहेगा उपर उठना।
आप का ये स्वार्थ ,ये लोभ एक दिन आप को ही निशाना बनाएगा। यकीन जानिए वो दिन आएगा। . क्यूंकि क्षमता के बल पर कुछ पाना सही है पर
एक भिखारी के करोड़पति होने की खबर थी। ।भिख मांगता था। इससे ज्यादा पिछड़ापन क्या होगा की वो फूटपाथ पर सोता था। करोड़ का मालिक होकर भी वो भिखमंगा था। क़्युङ्कि उसने अपनी पहचान यही मुक़र्रर कर ली थी और वो नही छोड़ना चाहता अपना लेबल। । जब बिना पढ़े मेहनत किये ।कुछ मिल रहगा हो तो कौन चाहेगा उपर उठना।