तीसरा नेत्र
नही होता कुछ और
होता है ' तीसरा व्यक्ति '
जो रहता है हमेशा
जो शिव को
बाघंबर से परे
ले जाता है शिवत्व में
हो जाते हैं एकाकार
शिव
और अनंत प्रकाश.......
और अनंत प्रकाश.......
'तम ' नही झेल पाता
प्रकाश
हो जाता है विलीन ( भस्म )
उस प्रकाश के पीछे
कण कण से
प्रस्फुटित होते हैं
नए बीज , नई सुगंध
नई रचना ----
नई सृष्टि का आविर्भाव
यही तो है…
गूंजता नाद
ह्ह्ह!
शिवोह्म ! शिवोह्म…!
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