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शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

आविर्भाव ...........


तीसरा नेत्र 
नही होता कुछ और 
होता है ' तीसरा व्यक्ति '  
जो रहता है हमेशा 
जो शिव को 
बाघंबर से परे 
ले जाता है शिवत्व में 
हो जाते हैं एकाकार 
शिव 
और अनंत प्रकाश....... 


'तम ' नही झेल पाता 
प्रकाश 
हो जाता है विलीन ( भस्म ) 
उस प्रकाश के पीछे  

कण  कण से 
प्रस्फुटित होते हैं 
नए बीज , नई सुगंध 
नई रचना ----
नई  सृष्टि का  आविर्भाव 
यही तो है… 
गूंजता नाद 
ह्ह्ह!
शिवोह्म !  शिवोह्म…!

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