तुम्हे आदत है
चलने की बहुत ..
वो भी
तेज़ रफ़्तार क़दमों से....
(मुझे रुक कर मुड कर देखना )....
मैं ......धूल से सनती...
आँखे मलती....
निशाँ पकडती ...
लकीरों को झाडती ...
हो गई हूँ एक लकीर ...
जो बनती, मिटती
न तेरे हाथ तक पहुंची ...
देखो ..! मिटने लगी है .अब
इससे पहले के हो जाये लुप्त
रौंद जाये
गाहे बगाहे पड़ते पाँव...
मिट जाये निशाँ..
न बचे शेष ...
हो जाये अवशेष
लौट आओ ....
एक बार ...
उकेर लो ..
अपने हाथ में
सिर्फ एक बार .....
चलने की बहुत ..
वो भी
तेज़ रफ़्तार क़दमों से....
(मुझे रुक कर मुड कर देखना )....
अचानक तुम
चलते चलते दौड़ने लगे ....
तब से ...मैं ......धूल से सनती...
आँखे मलती....
निशाँ पकडती ...
लकीरों को झाडती ...
हो गई हूँ एक लकीर ...
.jpg)
न तेरे हाथ तक पहुंची ...
देखो ..! मिटने लगी है .अब
इससे पहले के हो जाये लुप्त
रौंद जाये
गाहे बगाहे पड़ते पाँव...
मिट जाये निशाँ..
न बचे शेष ...
हो जाये अवशेष
लौट आओ ....
एक बार ...
उकेर लो ..
अपने हाथ में
सिर्फ एक बार .....