शमी के फूल
एक भाव
एक आंसू
अर्पित किया जो
शिव को.………
मन की टहनी पर
ढांपते भूरापन,
लद जातेहैं
लद जातेहैं
पीलेपन में।
खुश होते हैं
समर्पित से.……
शिव दृष्टि को पाकर।
अचानक कोई स्पर्श
हिला देता है डाली
बिखर जाते हैं
धरा पर.……
पोर चाहते है सहेजना
पर ,नही
होता है बहुत नाज़ुक
उनका होना (वजूद )
वो शमी के फूल हो
या कि आंसू ……
जब टूटते हैं , तो
कहाँ सिमटते है
सिवाय धरा की गोद के।
तभी होता है
सर्वोपरि , और प्रिय
शमी का फूल..
एक फूल एक क्षण
एक टहनी एक मन
चाहते हैं शिव ,
पूर्ण समर्पण …
एक फूल का चुनना
एकाकार हो जाना है
जो नही होता आसानी से
पर मुश्किल भी तो नही
चाहने पर। …।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें