न्याय और सत्य पथ पर
राम, तूने एक सेतु बनाया
विशालता के अहं को उसपे
नतमस्तक होना सिखाया ...
तुम्हारी सच्चाई पर उसने
रास्ता था तुम्हें दिखाया
चरणों को तेरे छूकर
लहरों ने मर्यादा को निभाया .....
भक्ति और समर्पण को
हवा ने गले से यूँ लगाया
तेरे नाम की लय पर
पत्थर को तैरते पाया .....
तेरे रूप की मोहकता
जल निहार रहा था मूक
तुम ही तुम थे सब जगह
जरा नही थी चूक .......
पर देखो फिर से
उठी है एक बयार
विकास की लय पर
एक सेतु बने आर पार .......
आगे बढने की प्रभु
लगी ये कैसी होड़
जाना कहाँ ,मालूम नही
फिर भी लगी है दौड ........
कोई जाये जाकर देखे सागर
चीख चीख कर करे पुकार
मत बांधों मुझे ,बहने दो
ना खड़ी करो तुम दीवार ...
कहीं सरहदें ...कहीं दीवार
कहीं जाति, कहीं धर्म विवाद
तेरी नैसर्गिकता से प्रभु ..
बुद्धि करती क्यूँ है छेड़छाड़ .....
एक दिन ऐसा आएगा ..
सुन लो प्रभु का नाद
यही उच्छृंखलता कभी तुम्हें
हे मानव, कर देगी बर्बाद ....
बाहर से तुम खूब फले हो
अन्तर में बसता खालीपन ..
झाँक लो भीतर एक बार तुम ...
विकसित हो जाएगा तन मन ........
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{ अंजू अनन्या }
{ "काव्य-चेतना " से }
सटीक .... विकास की होड में हम नुकसान करने पर आमदा हैं ।
जवाब देंहटाएंबहु बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति.....हैट्स ऑफ ।
जवाब देंहटाएंNice though....!
जवाब देंहटाएं"झाँक लो भीतर एक बार तुम...विकसित हो जाएगा तन मन" -- कितनी गहरी बात कह दी आपने अंजूजी । बधाई । सस्नेह
जवाब देंहटाएंबहुत गुमान था,नदियों को बांधते, मानव
जवाब देंहटाएंकेदार ऐ खौफ में ही, उम्र, गुज़र जायेगी !
आत्मअवलोकन को प्रेरित करती आपकी ये पंक्तियैं दिल को छुई ....
जवाब देंहटाएंबाहर से तुम खूब फले हो
अन्तर में बसता खालीपन ..
झाँक लो भीतर एक बार तुम ...
विकसित हो जाएगा तन मन ........