सुना था
झरना जब शिखर से
उतरता है जमीं पर ...
बज उठता है
जल में छिपा संगीत
जलतरंग सा ......
कितनी ही
स्वर लहरियां
सुरों की बंदिश
ताल की थाप पर
थिरकते बोल
घोल देते हैं
माधुर्य रस
उन निर्जन सन्नाटों में .........
............* ...*.............
हाँ ,
वो एक 'आवाज़ '
झरने सी
हृदय पाट को
चीरती
झील सी ,
थम गई है
ख़ामोशी में ...
बह रहा है
संगीत
सहज नदी सा
तन मन में ...........
आह !
नैसर्गिकता का सानी
कब कोई हुआ है ......!!!!!
सही कहा | प्रकृति अनुपम है |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया इमरान
जवाब देंहटाएंजिसकी गोद में खेलते हैं हम , उससे कितने हैं बेखबर , अच्छे शब्द :)
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