तुम्हारी याद
कोई याद ही नही
है धरती का वो कोना
जो अक्सर
बिन मौसम की बरसात से
हो जाता है गीला......
और फिर
महक उठती है उसमे
एक सोंधी सी खुशबू
तुम्हारी चाहत की.....
अनायास
कदम बढने लगते है
और फिर
भींच लेती हूँ
दोनों मुठियों में
उस अनदेखी,
अनजानी,
पर एहसासों में उतरी
उस खुशबू को-------
लौट आती हूँ
उन्ही पाँव
फिर से
तपती धूप में.........
अंजू जी,
जवाब देंहटाएंआज राजेश जी के ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी पढ़ी.....बहुत सुन्दर विचार लगे आपके ......वहीँ से आपके ब्लॉग पर आना हुआ......बहुत सुन्दर लगा आपका ब्लॉग....और पहली ही पोस्ट शानदार लगी.....मेरी शुभकामनायें आप ऐसे ही लिखती रहें.....आपको फॉलो करना चाहता हूँ ताकि आपकी हर पोस्ट का पता लग सके.....पर आपके ब्लॉग पर फौलोवर का आप्शन ही नहीं है....कृपया वो लगायें और इसकी सूचना दें......शुभकामनायें|
कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए-
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एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|
जहां बहुत कुछ हो...वहां से कुछ ना मिलना और जहां कुछ नहीं....वहां से बहुत कुछ मिल जाना......यही तो है...
जवाब देंहटाएं...यही तो है ....हाँ यही तो है जिंदगी...
जवाब देंहटाएंब्लॉग पे आने ,विचार लिखने का शुक्रिया
धन्यवाद ,राजेश जी
आपके विचार अच्छे है ,इसी लिए आप सबके विचारो की सराहना करते है
जवाब देंहटाएंबाकी विचार जिस मिटटी में उपजते हैं वो एक जैसी होती है....फर्क सिर्फ वातावरण का होता है....जिसमे वो पल्लवित होते हैं .....ब्लॉग पे आने ,शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत शुक्रिया -
"खलील जिब्रान " ब्लॉग अच्छा लगा ....कुछ पढ़ा ,कुछ और पढने के बाद ही लिखना मुनासिब है...
हाँ ऐसे महान चिन्तक के विचारों से रूबरू करवाने के लिए आप साधुवाद के पात्र है ....
शुक्रिया इमरान जी