Powered By Blogger

सोमवार, 19 सितंबर 2011

क्या कहूँ ... मैं ... उसे....! ! !.

मुखिया के लिए 
    प्रार्थना 
बच्चों के लिए 
   कामना 
जोड़ कर
दोनों हाथ 
खड़ी रहती है 
सुबह ,शाम .....

दिन ,महीने ,बरस 
जाते हैं गुज़र 
बीत जाती है 
 उम्र 
हो जाती है 
पत्थर .......

न नींव में 
जुड़ता 
न कंगूरे का 
हिस्सा 
बनती है 
बस_ _ _
दहलीज़ का 
किस्सा .......

तकती है 
राह 
नहीं कोई 
गवाह 
करती है 
निबाह 
नहीं भरती 
वो आह .....

पत्नी ,
माँ के नाम से 
होती है 
दर्ज़ 
निभाती है 
फ़र्ज़ 


क्या कहूँ...! !
मैं उसे 
आती है चुकाने 
वो तो 
कई ........
जन्मों के 
क़र्ज़ ........    

19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत मार्मिक.........बहुत गहराई लिए पोस्ट.......बहुत अच्छी लगी|

    जवाब देंहटाएं
  2. ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. स्त्री-जीवन का सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी चित्रण...
    हार्दिक बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  4. यही तो विडम्बना है स्त्री-जीवन की....बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  5. इमरान जी ,आपको पोस्ट पसंद आई -रचना के मर्म को समझा इसके लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. आपका ब्लॉग पर स्वागत ,और रचना की अनुभूति की गहराई तक जाने का शुक्रिया संजय जी

    जवाब देंहटाएं
  7. स्त्री जीवन को आपकी रचनायें बखूबी ब्यान करती है ,उसमे एक छोटा सा योगदान इस रचना का भी ,बधाई के लिए शुक्रिया शरद जी ....

    जवाब देंहटाएं
  8. वर्षा जी पहले तो आपका स्वागत,इस पोस्ट पर, आपको प्रस्तुति अच्छी लगी,इसके लिए आभार,सभी पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया ....मिले ऐसा चाहती हूँ

    जवाब देंहटाएं
  9. चुकाने आती है क़र्ज़ कई जन्मों के ...
    फिर भी वह इसे एहसान समझ कर नहीं प्यार करते निभाती है ...
    बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति....

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत भेद लिए है अपने अंदर आपके यह सारे शब्द सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई हो
    MADHUR VAANI
    BINDAAS_BAATEN
    MITRA-MADHUR

    जवाब देंहटाएं
  12. स्त्री जीवन बेहद गंभीर किन्तु सत्य उकेरा है।

    जवाब देंहटाएं
  13. बेहतरीन.....बेहद भावपूर्ण....अन्जु जी...इस शानदार रचना के लिये बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत ही सटीक और सशक्त भी

    जवाब देंहटाएं