मुखिया के लिए
प्रार्थना
बच्चों के लिए
कामना
जोड़ कर
दोनों हाथ
खड़ी रहती है
सुबह ,शाम .....
दिन ,महीने ,बरस
जाते हैं गुज़र
बीत जाती है
उम्र
हो जाती है
पत्थर .......
न नींव में
जुड़ता
न कंगूरे का
हिस्सा
बनती है
बस_ _ _
दहलीज़ का
किस्सा .......
तकती है
राह
नहीं कोई
गवाह
करती है
निबाह
नहीं भरती
वो आह .....
पत्नी ,
माँ के नाम से
होती है
दर्ज़
निभाती है
फ़र्ज़
क्या कहूँ...! !
मैं उसे
आती है चुकाने
वो तो
कई ........
जन्मों के
क़र्ज़ ........
बहुत मार्मिक.........बहुत गहराई लिए पोस्ट.......बहुत अच्छी लगी|
जवाब देंहटाएंह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
जवाब देंहटाएंस्त्री-जीवन का सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी चित्रण...
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई .
यही तो विडम्बना है स्त्री-जीवन की....बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंइमरान जी ,आपको पोस्ट पसंद आई -रचना के मर्म को समझा इसके लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग पर स्वागत ,और रचना की अनुभूति की गहराई तक जाने का शुक्रिया संजय जी
जवाब देंहटाएंस्त्री जीवन को आपकी रचनायें बखूबी ब्यान करती है ,उसमे एक छोटा सा योगदान इस रचना का भी ,बधाई के लिए शुक्रिया शरद जी ....
जवाब देंहटाएंवर्षा जी पहले तो आपका स्वागत,इस पोस्ट पर, आपको प्रस्तुति अच्छी लगी,इसके लिए आभार,सभी पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया ....मिले ऐसा चाहती हूँ
जवाब देंहटाएंhttp://urvija.parikalpnaa.com/2011/09/blog-post_22.html
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंचुकाने आती है क़र्ज़ कई जन्मों के ...
जवाब देंहटाएंफिर भी वह इसे एहसान समझ कर नहीं प्यार करते निभाती है ...
बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति !
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंbhaavpurn abhivaykti....
जवाब देंहटाएंbhaut hi sundar abhivaykti....
जवाब देंहटाएंबहुत भेद लिए है अपने अंदर आपके यह सारे शब्द सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई हो
जवाब देंहटाएंMADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN
MITRA-MADHUR
सब कह दिया......वाह.....भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंस्त्री जीवन बेहद गंभीर किन्तु सत्य उकेरा है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन.....बेहद भावपूर्ण....अन्जु जी...इस शानदार रचना के लिये बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक और सशक्त भी
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