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बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

इंतज़ार .......


इंतज़ार.....
नहीं सिला
जा सकता ....
यकीनन ,
सिला जा सकता ,
तो .....
बन जाता लिबास  ....
जिसे जब चाहा...
 फैंक दिया जाता ...
 उतार कर.....या
दे दिया जाता...
 किसी को दान में .....
 या बेच दिया जाता ...
बाज़ार में ...
किसी नई
ख्वाहिश की खातिर  .....!

शायद ..
इसी लिए
पहनता है इसे
कोई फरियादी ,
लपेट कर खुद को
 सहेजता है जैसे....
 स्वयं को ,
स्वयं में से ....!!!

9 टिप्‍पणियां:

  1. सुभानाल्लाह बहुत खूब.....क्यूंकि इंतज़ार की सिलाई नहीं होती :-))

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  2. बहुत ही खूबसूरती स वयक्त किया है मन के भावो को.......

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  3. इंतजार सचमुच नहीं सिला जा सकता,
    सुन्दर विचारों को प्रस्तुत करती रचना,
    सराहनीय..........
    नेता,कुत्ता और वेश्या

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  4. बहुत सुन्दर सृजन , सुन्दर भावाभिव्यक्ति .

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