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रविवार, 24 जून 2012

रिश्ता ..............

आदमी को 
चाहिए थी औरत 
औरत को एक रिश्ता ....
दोनों के बीच था 
गहरा समंदर ....
न वो आर हुए ....
न पार ....
बस  बंधे रहे 
डोर के दो सिरों से .........
( "काव्य-लहरी " में प्रकाशित )

7 टिप्‍पणियां:

  1. तैरने की कुशलता सिखाई नहीं जा सकती !

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  2. समंदर को पार करना आसान कहाँ है .... सुंदर अभिव्यक्ति

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  3. अनुपम भाव लिए बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  4. सुन्दर और शानदार प्रस्तुति।

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  5. साथ साथ मूक चलना भी आसान नहीं रहा होगा ... पट मजबूरियों के ये समुन्दर कोशिश से ही पार हो जाता ...

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  6. ये विश्वास की डोर ही दोनों सिरों को बंधे रखती हैं

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