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शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

तुम ..से ....तुम्हारे साथ ..(?---??)


तुम 
अबूझ पहेली थे 
मेरे लिए ..
जिसे बूझने का प्रयास 
दे गया अनेक सवाल ------

और अब 
बूझ कर भी 
उन सवालों के बीच 
'मैं 'खुद बन गई 
एक अबूझ पहेली 
तुम्हारे साथ .------

(अंजू अनन्या )



10 टिप्‍पणियां:

  1. यही तो उलझन है रिश्तों की...
    सुन्दर रचना..

    अनु

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  2. हर पहेली एक हल लिए रहती है अपने साथ.......थोड़ा सा ध्यान लगाने की ज़रूरत है ।

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  3. बस यूं ही पहेली सुलझाते सुलझाते जीवन कट जाएग ....

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  4. कभी "वो" कभी "हम" पहेलियाँ बनते और उनमें उलझते रहते हैं - जीवन सत्य

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  5. कुछ ही शब्दों में गहरी बात ...
    जीवन भी तो अपने आप में एक पहेली ही है ...

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  6. शुक्रिया आप सभी का ......जी नासवा जी बस यही मर्म है इस रचना का ....जीवन या फिर ईश्वर ......

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