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मंगलवार, 1 जनवरी 2013

दामिनी .....तुम चली गई ...


तुम चली गई ........हाँ ....

छोड़ दिया तुमने वो शरीर  

जो तुम्हारा था ही नही ...

पहना था लिबास सा तुमने ...

दिखाने  को नंगा सच ..

उन आँखों का ....

जो मानती हैं खुद को ईश्वर ..

ठहराती हैं खुद को 

निगेहबां तुम्हारा ....!


निगेहबानी ...और वो 

जिसे चाहिए 

कर्मो के भुगतान के लिए 

तेरी कोख का सहारा ........!!!



हाँ दामिनी नही लिख पाई मैं कोई कविता तुम पर ....ना ही लगा पाई कोई नारा .....

ना ही व्यक्त कर पाई संवेदना ....

हाथ जुड़े थे दुआ में ...और आँखे पानी पानी ...शब्द घुट गए थे उस चीख में ...बताओ फिर कैसे 

लिखती कोई कविता कहानी .....!!!

एक बात पूछूं .......क्या अब भी तुम इस पुरुष ईश्वर के प्रति संवेदनशील रहना चाहोगी .....बोलो ....

क्या अब भी तुम उसे अपनी कोख का सहारा देने के लिए अपना बलिदान ...अपनी हत्या करती रहोगी ....

क्या  अब भी तुम उसके प्रति प्रेम  में ...अपने परमात्म प्रेम की अवहेलना करती रहोगी .....

प्रेम और प्यार में अन्तर नही कर पाओगी ......

क्या अब भी तुम अपनी शक्ति को दुर्गा की बजाए पूतना में प्रजवलित कर यशोदा को पीड़ित करोगी ......

नही  दामिनी ...नही .....अब तुम शरीर से परे आज़ाद ....शक्ति सम्पन्न रूह हो .....और मैंने सुना है रूह 

जब शरीर में होती है मजबूर होती है अपने कर्मफल के हाथों .....अब तुम मजबूर नही हो ......अब तुम्हें 

इस लौ को मशाल बनाना है ........


हाँ ..एक बात कहूँ ....आज मुझे अपने लिए फैसले पर कोई संशय नही रहा .....जो अक्सर राखी के दिन ...

मुझे दोषी सा महसूसता था ......

या थके हारे वक्त की आँखों में बेसहारा सी झलक मुझे स्वार्थी घोषित करती नज़र आती थी .......

या कभी कभी भविष्य के अकेलेपन का डर मेरे मन में चोर सा घुसपैठ करता मुझे डराता था .....

हाँ दामिनी ....शिव और शक्ति एक हैं ...पर जब जब उन्हें अलग कर के देखा जिया जाता है ...वो 

कल्याणकारी नही होते ....

पुरुष के भीतर का पुरुष जब जब खुद को साबित करना चाहता है तब तब स्त्री पीड़ित होती है ......माँ 

,बहिन , पत्नी ,दोस्त ,....प्रेमिका ...किसी भी रूप में हो ........इस लिए ...सच कहूँ मुझे नफरत है उसके 

भीतर के इस रूप ,दंभ से .......

सुनो ! अपनी शक्ति को पहचानो ......उसे शक्ति स्वरूप के लिए एकाग्र ,एकत्रित करो .......अपनी ही 

शक्ति को मत होने दो प्रताडित ...तुम्हारी एकता ..तुम्हें तुम्हारी पहचान दिलाएगी .....तुम्हारी ही गुलामी 

से तुम्हें आज़ाद करवाएगी ........

( बहुत कुछ में से कुछ ....पर भीतर जो चल रहा है वो बह रहा है नही बाँध पा रही शब्दों में .......बिखराव है ....इसे कोई नाम नही दे ...ऐसी गुजारिश ....)

2 टिप्‍पणियां:

  1. कोई नाम दिया भी नहीं जा सकता ..... दामिनी गई नहीं,ठहर गई है प्रत्याशित निगाहों के संग हमारे आगे .... वह जाना नहीं चाहती थी,तो कैसे जा सकती है !!!

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  2. शक्ति को मत होने दो प्रताडित ...तुम्हारी एकता ..तुम्हें तुम्हारी पहचान दिलाएगी .....तुम्हारी ही गुलामी से तुम्हें आज़ाद करवाएगी ........

    भावनाओं से भरी पोस्ट।

    जवाब देंहटाएं