गुलमोहर ... उदास है ....
झर जो गई थीं
उसकी पत्तियाँ
जिनके संग वह जीता था
हरीतिमा को.......!
एक सर्द झोंके का स्पर्श
तोड़ गया
लम्हों की बंदिश ...!!!!
कांपते सुर .....
दे रहे आश्वासन ..!
बरसती बूंदें ...
कर रही आह्वान ..
मानो .....,कहते हुए
निष्प्राण में भर रही प्राण ...
कि ,
फिर खिलेंगी पत्तियाँ
हंस पड़ेगा गुलमोहर
जब दहक उठेगे ....
फिर से ..
सिंदूरी फूल....
जेठ की दोपहरी में ...!!!
(अंजू अनन्या )(4 .2 .2013)
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आपकी रचना के एक-एक शब्द दिल को छूते हैं !!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !!
बहुत सुन्दर है गुलमोहर की ये आस !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर......एक गहन सन्देश देती पोस्ट।
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