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शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

सुर और ताल .......


वेद
बन गए वाद.....
शास्त्र
बन गए शस्त्र...
और ‘गीता’ 
रह गई , 
बन कर गीत....





कौन हैं ‘जो
सुर पहचाने
कौन है 'जो'
ताल मिलाए
बैठे हैं , सब के सब
जाल बिछाए..........!!!!!



(....'काव्यांजलि' से ....)
 (काव्य संग्रह...चंडीगढ़ साहित्य अकादेमी) 


5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सटीक हैं शब्द और उनमे छुपा अर्थ .....हैट्स ऑफ इसके लिए|

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  2. बहुत ही सटीक और सार्थक.... सहज शब्दों में बहुत गहरी बात.....कह दी अपने....

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  3. जिनके पास सुर है... वे हैं सहमे हुए

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  4. सार्थक बात कही है ... अभी तो सुर ताल कुछ भी नहीं मिल रहा ..सब अपनी ढपली और अपना राग गा रहे हैं ..

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  5. बहुत बढ़िया,
    बड़ी खूबसूरती से सार्थक बात कही

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