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रविवार, 8 जनवरी 2012

कोहरे की परत छाई है .........................!



धुआं धुआं बिखरी तन्हाई है ..
तुम कहते हो कोहरे की परत छाई है ...

आंच बाकी है अभी जख्मों में 
अलाव में, किसलिए आग जलाई है .....

जलाने चले हो मिटटी का एक दिया 
हाथ में किसलिए पूरी दियासलाई है .......


15 टिप्‍पणियां:

  1. वाह.......बहुत खूब|

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. धुआं धुआं बिखरी तन्हाई है ..
    तुम कहते हो कोहरे की परत छाई है ...

    कोहरे में छुप गयी तन्हाई है
    प्रकृति ने ऐसी ही कोई साजिश रचाई है

    आंच बाकी है अभी जख्मों में
    अलाव में, किसलिए आग जलाई है .....

    चिंगारी जो थी ज़ख्मों में छुपी
    उसी से अलाव में आग भड़क आई है

    जलाने चले हो मिटटी का एक दिया
    हाथ में किसलिए पूरी दियासलाई है .......

    अश्कों की शबनम से भीग गयी दियासलाई
    दिए की बाती भी यह देख बस कंपकपायी है


    बहुत खूबसूरत

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  4. आलम यही है..
    चिंगारी जो थी ज़ख्मों में छुपी
    उसी से अलाव में आग भड़क आई है

    जलाने चले हो मिटटी का एक दिया
    हाथ में किसलिए पूरी दियासलाई है .......
    पधारें कभी..-kalamdaan.blogspot.com

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  5. आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया .....

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  6. बहुत खूब संगीता जी .............
    सुंदर प्रतिक्रिया है ......हमेशा की तरह स्वागत के साथ आप का तहे दिल से शुक्रिया ....

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  7. धुआं धुआं बिखरी तन्हाई है ..
    तुम कहते हो कोहरे की परत छाई है ...

    वाह ...बहुत खूब ।

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