इंतज़ार.....
नहीं सिला
जा सकता ....
यकीनन ,
सिला जा सकता ,
तो .....
बन जाता लिबास ....
जिसे जब चाहा...
फैंक दिया जाता ...
उतार कर.....या
दे दिया जाता...
किसी को दान में .....
या बेच दिया जाता ...
बाज़ार में ...
किसी नई
ख्वाहिश की खातिर .....!
शायद ..
इसी लिए
पहनता है इसे
कोई फरियादी ,
लपेट कर खुद को
सहेजता है जैसे....
स्वयं को ,
स्वयं में से ....!!!
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुभानाल्लाह बहुत खूब.....क्यूंकि इंतज़ार की सिलाई नहीं होती :-))
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही खूबसूरती स वयक्त किया है मन के भावो को.......
जवाब देंहटाएंachanak aapke blog ko dekha.. bahut khoobsurat rachna hai aapki...
जवाब देंहटाएंइंतजार सचमुच नहीं सिला जा सकता,
जवाब देंहटाएंसुन्दर विचारों को प्रस्तुत करती रचना,
सराहनीय..........
नेता,कुत्ता और वेश्या
where is my comment Anju?
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन , सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
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