शिवरात्रि के रोज़
पत्तों और
कच्चे फलों से
विरक्त कर दिया गया
'बेल 'का पेड़ .....!
श्रद्धा ,अभिव्यक्ति का
ये रूप
मुझे गया
झकझोर ....
क्यूंकि ,
एक स्पर्श के बाद
पत्तों ,फलों की
जगह थी
कचरे का डिब्बा ...!!
सोच रही हूँ .....
समय से पहले
ये मृत्यु है
जीवन की ,
या फिर
मुक्ति का
कोई सिलसिला ....!
धारणाओं ,मान्यताओं
की भूमि पर ,
जीवंत हो गया
दृष्टिकोण ....
अन्त:करण पुकार उठा ....
जीवन जीवन होता है .....
भिन्न होता है तो
दृष्टिकोण .....
जो देता है मायने
जीवन को ........!!
(ये दृश्य मनगढंत नहीं ...हकीकत है ...)
("काव्य चेतना " से ..)
संपादक :डॉ. धर्म स्वरुप गुप्त
वर्ष :2009
पत्तों और
कच्चे फलों से
विरक्त कर दिया गया
'बेल 'का पेड़ .....!
श्रद्धा ,अभिव्यक्ति का
ये रूप
मुझे गया
झकझोर ....
क्यूंकि ,
एक स्पर्श के बाद
पत्तों ,फलों की
जगह थी
कचरे का डिब्बा ...!!
सोच रही हूँ .....
समय से पहले
ये मृत्यु है
जीवन की ,
या फिर
मुक्ति का
कोई सिलसिला ....!
धारणाओं ,मान्यताओं
की भूमि पर ,
जीवंत हो गया
दृष्टिकोण ....
अन्त:करण पुकार उठा ....
जीवन जीवन होता है .....
भिन्न होता है तो
दृष्टिकोण .....
जो देता है मायने
जीवन को ........!!
(ये दृश्य मनगढंत नहीं ...हकीकत है ...)
("काव्य चेतना " से ..)
संपादक :डॉ. धर्म स्वरुप गुप्त
वर्ष :2009
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत गहरा मामला है.....कम ही पल्ले पड़ा....
जवाब देंहटाएंजीवन जीवन होता है.....
जवाब देंहटाएंभिन्न होता है तो
दृष्टिकोण .....
जो देता है मायने
जीवन को ........!!
उचित या अनुचित.... :)
आभार आज के लिए.... :)
अलग सोच दृष्टिगत है
जवाब देंहटाएंसोचने को मजबूर करती पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंअलग सोच की रचना...
जवाब देंहटाएंशिवरात्री की बधाईयाँ.
या फिर
जवाब देंहटाएंमुक्ति का
कोई सिलसिला ....!
विचारनीय एवं गंभीर कविता
आभार
सुन्दर और सार्थक पोस्ट।
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