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सोमवार, 5 मार्च 2012

माँतृ प्रेम पूजनीय है तो..... पितृ प्रेम ......अतुलनीय ...!

पिता कठोर हो सकता है पर पत्थर नही ......
पत्थर लगे तो सोचना ......
पत्थरों से भी पानी रिसता है .....
समंदर की लहरों का असर उस पर भी होता है ...........
.
धार पर छैनी की ..लेकर के अभाव .....
भरता है झोली ....देकर के भाव ......

नही झलकता , बस बरसता ,
मन मंदिर के द्वार ..
लिए नयन में अश्रु धार
बहता भीतर ही भीतर
खामोश समंदर सा दुलार ......!!



(आज पितृ दिवस तो नही .....पर हाँ ...
एक पिता की मौन भावना दिल को छू गई ...
और सभी पिताओं को आईना दे गई ......)

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