....(1).....
मिठास पर
खिंचती चली आई थी
मक्खियाँ ......
अंतत: मिठास
निगल गई
उनके
कोमल वजूद को .....!!!!!!
....(2).....
तुम
देवता हो
और मैं
इंसान ......
बस यही
एक फर्क है
जो करता है जुदा ...
मुझे ' तुम ' से
और तुम्हें
'तुमसे '....................!!!! (अनन्या अंजू )
........(3).......
.खामोश रहना ....
कुछ न कहना ..... !
कहने से
भिन भिनाएगी मक्खियां
इसलिए ..जख्मों को
जरा सा ,
ढक कर रखना .....!!
मवाद के साथ
चाट जाएँगी
ये लहू ...
हो जायगा मुश्किल
फिर
दर्द को सहना ...!!!
आखिरी सांस की
टीस...
कर देगा आसान ....
ख़ून जमी
शिराओं में
दर्द का बहना..........!!!!!!
(अनन्या अंजू )
क्षनिकाएं जीवन का यथार्थ हैं
जवाब देंहटाएंयथार्थ को कहती गहन क्षणिकाएं
जवाब देंहटाएंजीवन का दर्द हैं ...
जवाब देंहटाएंकह देने से ही बात दिल से निकलती हैं
जवाब देंहटाएंदबाने से तो ज़ख्म नासूर बन जाते हैं,
वाह बहुत ही खूब अंजू.....शानदार लिखा है।
जीवन की टीस को सहेजे सुन्दर क्षणिकाएं !
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