उसमे डूबी
लड़ रही हूं
मैं ,स्वयं से !
क्या ..
भ्रम है वो मेरा
या फिर
है मरूभूमि में
जल का आभास ....!!
छोड़ दूँ खोज
किसी डर से
या दौड लूँ ,उस
परछाई के पीछे .....!
जिज्ञासावश देखा
फिर से उन आँखों में
जाने क्या सूझा ,
दौड पड़ी
उस जल जैसे आभास को
अंजुरी में भरने ...!!!
जानती थी
नहीं , ये कुछ ओर
है केवल
मन की मरीचिका ..!!
शायद ...
जीवन भी तो
है मात्र...
एक जीजिविषा ..............(अनन्या अंजू )
bahut sundar rachna, aabhar
जवाब देंहटाएंदूर होता जाता है आभास,मिलने की इच्छा मरती नहीं....मरीचिका ही जिजीविषा बन जाती है
जवाब देंहटाएंbehtarin bhav liye rachana..
जवाब देंहटाएं:-)
मृगमरीचिका में भटकते मन को चैन कहाँ.... आराम कहा??? बहुत सुन्दर रचना अंजू जी!
जवाब देंहटाएंभटकाव में जिंदगी नहीं है
जवाब देंहटाएंकहीं तो विराम देना होगा ......
बहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएं