हाँ ...कभी कभी .....
कुछ कहने ..सुनने का ...
फडफडाते पंछी की तरह
तोड़ कर पिंजरा ...
एक ही श्वास की उड़ान में
पहुँच जाना चाहती हूं
तुम तक ......!!!
मस्तिष्क की शिराएं
खिंचती हैं
सिकुड जाता है हृदय ...
चोपर (choper) पर चलते चाकू सा
गूंजता है स्पंदन ......
शुष्क बुदबुदाहट
चीरती हैं होंठ .....!!!
अंतत: ठंडी
गहरी सांस के साथ
छौंक देती हूं सब कुछ
दो बूँद मौन में ....................!!!!!
(अनन्या ).......१८/९/१२
दो बूंद मौन में बने मेरे भावों को कभी चखना तो सही...प्रमाणित तो नहीं करती,पर विश्वास देती हूँ- यह स्वाद हमदोनों को अमरत्व देगा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सच ....दी ..!शुक्रिया
जवाब देंहटाएंखूबसूरती से लिखा है ... दो बूंद मौन
जवाब देंहटाएंबेहद गहन और सुन्दर पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबहुत भावुक .... दो बूँद मौन न जाने क्या क्या बयान कर गया..
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 11-10 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....शाम है धुआँ धुआँ और गूंगा चाँद । .
गहन भाव लिए सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर..
:-)
अंतत: ठंडी
जवाब देंहटाएंगहरी सांस के साथ
छौंक देती हूं सब कुछ
दो बूँद मौन में ....................!!!!!
और इन दो बूंदों के साथ बहुत कुछ पक जाता है....स्वादिष्ट और पौष्टिक... !