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मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

दो बूँद मौन.....................



बहुत मन होता है .....
हाँ ...कभी कभी .....
कुछ कहने ..सुनने का ...
फडफडाते पंछी की तरह  
तोड़ कर पिंजरा ...
एक ही श्वास की उड़ान में  
पहुँच जाना चाहती हूं  
तुम तक ......!!!


मस्तिष्क की शिराएं  
खिंचती हैं 
सिकुड जाता है हृदय ...
चोपर (choper) पर चलते चाकू  सा  
गूंजता है स्पंदन ......

शुष्क बुदबुदाहट  
चीरती हैं होंठ .....!!!

 अंतत: ठंडी  
गहरी सांस के साथ  
छौंक देती हूं सब कुछ  
दो बूँद मौन में ....................!!!!!
(अनन्या ).......१८/९/१२ 

8 टिप्‍पणियां:

  1. दो बूंद मौन में बने मेरे भावों को कभी चखना तो सही...प्रमाणित तो नहीं करती,पर विश्वास देती हूँ- यह स्वाद हमदोनों को अमरत्व देगा

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  2. बहुत सुंदर सच ....दी ..!शुक्रिया

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  3. बहुत भावुक .... दो बूँद मौन न जाने क्या क्या बयान कर गया..

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  4. गहन भाव लिए सुन्दर रचना..
    अति सुन्दर..
    :-)

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  5. अंतत: ठंडी
    गहरी सांस के साथ
    छौंक देती हूं सब कुछ
    दो बूँद मौन में ....................!!!!!

    और इन दो बूंदों के साथ बहुत कुछ पक जाता है....स्वादिष्ट और पौष्टिक... !

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