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गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

वो इक आवाज़ ..........







सुना था
झरना जब शिखर से 
उतरता है जमीं पर ...

बज उठता है 
जल में छिपा संगीत 
जलतरंग सा ......

कितनी ही 
स्वर लहरियां 
सुरों की बंदिश 
ताल की  थाप पर 
थिरकते बोल 
घोल   देते हैं 
माधुर्य  रस 
उन निर्जन सन्नाटों में .........

............* ...*.............

हाँ , 
वो एक 'आवाज़ '
झरने सी 

हृदय पाट को 
चीरती 
झील सी ,
थम गई है 
ख़ामोशी में ...

बह रहा है 
संगीत 
सहज नदी सा 
तन मन में ...........

आह ! 
नैसर्गिकता का सानी 
कब कोई हुआ है ......!!!!!

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