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शनिवार, 5 मार्च 2011

अमृता



नदी बन कर
बहती रही~~~~~~
अपने ही किनारों
को लिया खोर
इस बहाव में..........और
बन गई
अथाह समन्दर-
जहॉ, ना किनारे हैं
ना नदी,
है तो
बस विस्तृत
फैला अस्तित्व..
गहराई में जिसकी
छिपे हैं खज़ाने
तुम्हारे अनमोल
अस्तित्व के...

2 टिप्‍पणियां:

  1. नदी बन कर
    बहती रही~~~~~~
    अपने ही किनारों
    को लिया खोर
    इस बहाव में..........और
    बन गई
    अथाह समन्दर-......

    अमृता जी के लिए बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति प्रस्तुत करने के लिये हार्दिक बधाई...

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  2. अभिव्यक्ति के प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद,डा.शरद ...
    अमृता जी स्वयं एक सुंदर गहरा भाव है,और मेरी बहुत ही प्रिय इंसान है..
    बेहतरीन रचनाकार तो वो है ही......ये सब जानते हैं,

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