Powered By Blogger

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

अन्तर..............

अन्तर है......
मंदिर के पत्थर


और
रास्ते के पत्थर में
 इतना ही .....

एक पे विश्वास
किया तुमनेऔर
दूसरे ने


तुम पर .........

( "काव्य-चेतना "में प्रकाशित )

13 टिप्‍पणियां:

  1. तहे दिल से स्वागत है आपका धनपत जी...... ....और शुक्रिया प्रतिक्रिया के लिए ....

    जवाब देंहटाएं
  2. मैं तो रास्ते के पत्थर में भी कभी कभी अटक जाती हूँ और उठा लेती हूँ

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. ये आपकी नम्रता और विश्वसनीयता है...ईश्वर के प्रति .....बस यही अंतर है रश्मि जी.....विश्वास किया नही जाता ....दिलाया जाता है .....हम इसका श्री स्वयं पर ले लेते है क ....मैं विशवास करता हूँ......आप पत्थर को वही देती हैं जिसकी उसे जरूरत होती है....

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर कम शब्द गहरे अर्थ........विश्वास तो मन से है |

    जवाब देंहटाएं
  6. विश्वास की नीवं बस एक ही बार पड़ती हैं ....वो पत्थर हो या ईश्वर ...

    जवाब देंहटाएं
  7. ...ईश्वर के प्रति विश्वसनीयता है

    जवाब देंहटाएं