हॉ, सुधि् में बसी
वो मौन अनुभूति
जो ले जाती है
तेज हवा के झोंके सी
नदी के बहाव को
समन्दर की ओर ...........
जहाँ, चाहने पर भी बहुत
नहीं जा पाते,
हम अकसर...!
हाँ, यही है
वो अहसास, जो
बन जाता है कारण
स्वयं हमें, ‘हम’ से
मिलाने का....
वर्ना ,
कहाँ पहुँच पाते हैं
हम, स्वयं के
अहसास तक ..................!!!!!
ऐसी अनुभूति सुधि में बसी रहे ... सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवो अहसास, जो
जवाब देंहटाएंबन जाता है कारण
स्वयं हमें, ‘हम’ से
मिलाने का....
badhiyaa
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबेहद गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंस्वयं को स्वयं तक पहुंचना बहुत मुश्किल होता है ... खुद को पा लिया तो इश्वर को पाना होता है ...
जवाब देंहटाएंगहरी अनुभूति है ...
कहाँ पहुँच पाते हैं
जवाब देंहटाएंहम, स्वयं के
अहसास तक ..................!!!!!
सुन्दर और शानदार लगी पोस्ट।
एहसासों की नदी अपनी
जवाब देंहटाएंएहसासों का सागर अपना
मंथन का कंकड़ अपना ....
हिलोरें इतनी तीव्रता से उठती हैं
कि ....... नदी सागर से मिल नहीं पाती
या मिलके भी अधूरी रह जाती है
गहन अनुभूति की सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंगहरी अनुभूति से उपजी एक भावपूर्ण रचना । बधाई आपको।
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