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गुरुवार, 28 मार्च 2013

क्षणिका ...प्रेम ...(१)



(१)........
उसने टूट कर
किया था प्रेम ..!
इतना टूटा
कि किर्चियों की चुभन
रह गई बाकी ...
अब किरची दर किरची
निकालता है जिस्म से
और बींध देता है
उस प्राणमयी टहनी में ....
(रिसते प्राण नही दिखते )
कहने को
फूलों से बहुत प्रेम है उसे
सहेजने का हुनर जानता है ...
पर ...
नही समझ पाता
प्रेम की  पीड़ा को .....!!!
(पत्तियां बिखरती रहती हैं )........

(अंजू अनन्या )

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