उसने टूट कर
किया था प्रेम ..!
इतना टूटा
कि किर्चियों की चुभन
किया था प्रेम ..!
इतना टूटा
कि किर्चियों की चुभन
रह गई बाकी ...
अब किरची दर किरची
निकालता है जिस्म से
और बींध देता है
निकालता है जिस्म से
और बींध देता है
उस प्राणमयी टहनी में ....
(रिसते प्राण नही दिखते )
कहने को
फूलों से बहुत प्रेम है उसे
कहने को
फूलों से बहुत प्रेम है उसे
सहेजने का हुनर जानता है ...
पर ...
नही समझ पाता
प्रेम की पीड़ा को .....!!!
(पत्तियां बिखरती रहती हैं )........
(अंजू अनन्या )
नही समझ पाता
प्रेम की पीड़ा को .....!!!
(पत्तियां बिखरती रहती हैं )........
(अंजू अनन्या )
ओह .... दर्द की हद .... बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुन्दर एहसास की अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंlatest post कोल्हू के बैल
latest post धर्म क्या है ?
सुन्दर शब्दों में रची बसी कविता ।
जवाब देंहटाएंकिरचों जैसे ही चुभते हैं दर्द और दर्द में पगे शब्द
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