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शनिवार, 15 जून 2013

एक पूरा आसमान ..............पिता .........

पिता के पास भी ..होता है दिल ....अहसास भरा .....पिता की आँख में भी ......पलते है सपने .... पिता भी उड़ता है आकाश .... पितृत्व के पंख लगा .............

पिता की भावनाएं ..... नही लेती शाब्दिक आकार ...... पिता के भीतर भी ..होता है स्नेह सागर ...हिलोरे लेता ..अपने ही गहरे में ..... ....पिता के सीने में छुपा होता है आसमान..... फैलता है अपने पंछी की अनन्त उड़ान के एक स्पर्श मात्र से ...... 

पिता भी महसूसता है दर्द .... बिछोह.... पीड़ा ....बस नही छलकता आँख से आँसू की तरह ....ठहरा रहता है नमी की तरह ...... जुबां से नही बिखरता हवाओं में ...शब्द बन ..... सिले होंठों के पीछे समाया रहता है अर्थ बन ............ अह्ह्ह्ह्ह!!!! 

पिता सूरज की आग अपने दामन में समेट ...बाँट देता है रौशनी ...... अपने नन्हे पौधों को .....पेड़ बनाने के लिए ..... पेड़ की घनी छाया की कल्पना मात्र से ..आह्लादित होता है मन ही मन ....... पर छाया सुख से रहता है विहीन ....आसमान जो है ..... कब मुक्त होता है फर्ज से .....

कितना ऊँचा होता है ना आसमान .......... नही समझते ..उसके असीम नीले को ..... नही कर पाते स्पर्श भी हल्का सा .... उसके अनन्त विस्तार का .... बरसात में शामिल उसकी खुशी ...उसके गम का ..... ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह !! 

देखा है मैंने एक पिता की आँख में ...पढा है उसकी ख़ामोशी में .... किनारों से लौटती ...उमडती लहर में ...... बरस जाने को आतुर बदली ...घुलती आँखों की पुतली में .... एक बूँद पलकों के किनारे ठहरी ... जो हो जाती है जज़्ब .....उसकी हथेलियों की गर्माहट ...और ऊँगली के पोर में ........ 

कल इसी ऊँगली ने चलना सिखाया था ...... आज पकड़ नही ...पर ...दूर आसमान में इशारा करती .... देती है सम्बल ...आज भी ...... मुस्कुराते हुए .... कहती है ..." मैं हूं ना ...." ..... तुम उडो ...जहां तक उड़ सको ........ अपने सपनों के पंख काट कर ....जोड़ दिए ... अपने पंछी के सपनों के साथ ...... अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह!!!! .......

कितना कहूँ .....जितना भी कम है ... आसमां के विस्तार का अंत नही ...... अनंत उड़ान है ..... पंख और परवाज़ चाहिए ...... फिर भी नही नाप सकती मैं आसमान ...... जैसे धरा की गहराई ... सहनशीलता को नही आँका जा सकता .... वैसे ही नही नापा जा सकता ... आकाश की विस्तृत फैलाव को .... 

मैंने खो कर पाया ...ये विस्तार ....../ पर देखा है मैंने ....परसों नरसों....और पहले भी कई बरसों ..... जीवंत अहसास .... पिता की उस जीवंतता को सलाम ......... नमन ..... !! 

आज आसमान से मेरे लिए ...बरस रही है ठंडक ...... पिता का स्पर्श लिए ..... मन की सफेद कँवल सी पवित्र भावनाओं के लिए ..... पर अनंत आसमान में समाये ...मेरे निराकार पिता .....ये आपकी देन है .....आपका आशीर्वाद .....आपकी असीम स्नेहिल कृपा ...... जिसने दी ये अहसास की शक्ति ... जाते जाते दे गयी .... एक ऐसा आकाश .... विचरण कर सकूँ ..... और देख पाऊं ..... नीला आकाश ..... और उसके पीछे का रहस्य ..... आपके प्रति कृतज्ञ हूं ... शुक्रगुजार भी ...इस जीवन की नियामत के लिए ............... 


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