कुछ दिन पहले इमरोज़ जी से जब मिली थी तो किसी से बात करते हुए वो घर का पता बदलने कि बात कह रहे थे ,पर मैं पलट कर सवाल नहीं कर पायी क्यूंकि अक्सर जब भी मिलती हूँ सवाल कर ही नहीं पाती सिर्फ देखती ,सुनती रहती हूँ वो जो भी कहते हैं ,शायद इसलिए कि अमृता इमरोज़ एक ही दिखते है .पर एक सवाल भीतर ही भीतर कुलबुला रहा था ऐसी कौन सी वजह है जिसके चलते ये फैसला इमरोज़ जी ने लिया ,कौन सी मजबूरी ..हालाँकि इस शब्द से वो कोसो दूर है ...फिर क्यूँ .......ये क्यूँ आज भी बरकरार है .......पर आज एक बार फिर दिल पर गहरा आघात हुआ "ये सच है " ये जानकर ...जैसे अमृता के जाने के वक्त हुआ था , वो दर्द कुछ कम हुआ था इमरोज़ से रूबरू होने के बाद ..
ये अच्छा हुआ या बुरा ,उचित अनुचित ,पता नहीं पर मेरी आँख में पलता सपना टूट गया ,जैसे कोई अपना छूट गया, अब ढूँढने को दुनिया हो गई ,मंदिर में स्थापित मूर्त खो गई....
सोच रही हूँ क्या इमरोज़ उस घर के बिना रह पाएंगे ,जहाँ आज भी अमृता बोलती रही है उनके अकेलेपन में ,हंसती, खिलखिलाती,गुनगुनाती,इशारों में बतियाती हर पल हर लम्हा साथ साथ चलती रही है ,इस सबके साक्षात गवाह इमरोज़ स्वयं है उनका चेहरा ,उनकी आँखे जो,अमृता के चाहने वालों की भीड़ में...अमृता की बात करते करते बरबस उस प्रेम से भीग जाती है, ये जाने कितनी बार ,बार बार ,हर बार होता रहा है .....होता रहेगा....
फिर ये सवाल जेहन को क्यूँ भ्रमित कर रहा है..एक ईंट गारे का घर ,दूसरा जीवंत ,सांस लेता घर जहाँ भी होगा अमृता वहीँ होगी ....निशानियाँ मरने वालों की संभाली जाती है ,जो जीवित हैं उनका जीवन प्रेरणा की अमिट निशानी है .....सोचा...! सोचा...!समझा ...तो मन भीग गया उस सत्यता की रौशनी से ......
जिसने मनचाही जिंदगी जी ... खामोश मौत को चुना.. जो सारे कर्मकांडो को तोडकर ,मिटटी के बिछोने पर,मनचाही चादर ओढ़ कर ,मिटटी में बीज सी घुल गई ...वो अनश्वर ,नश्वरता को कैसे तरजीह दे ....जीवन जीना अनश्वर की और ले जा है,तो जीवन बिताना नश्वरता से जोड़ कर बन्धनों में बांधता है ....जो उसे जकड नही पाए और इमरोज़ जी को पकड़ नहीं पाए .....कुछ न कह कर भी बहुत कुछ कह जाते हैं इमरोज़ ,कहने पे आयें तो यूँ ...जैसे सूरज का रोज़ निकलना और फिर छुप जाना.....
सवाल कभी नहीं किया ,और करूं तो कैसे ...."अमृता इमरोज़ के ख़त " का अंग्रेजी अनुवाद पुस्तक के विमोचन पर इमरोज़ जी से मिली ,बहुत सी बातें हुई ...इमरोज़ जी को कार्यक्रम के फ़ौरन बाद वापस जाना था इस अचानक के पीछे की वजह भी निश्छल ,बिलकुल उनके जैसी ..हालाँकि अगले दिन एक और विमोचन उन्हें करना था जिसके लिए ख़ास वो चंडीगढ़ आये थे ....पर इंसानियत ...मुंबई से कोई आम सा इंसान ,मेरे जैसा,अमृता जी का पाठक उनके घर आ रहा था ,और दोनों प्रोग्राम एक ही दिन हो गए ,अपनी गलती को स्वीकार भी किया ...दो अखबारों में खबर या रचना छपते ही बड़े ,और दो किताबें आते ही बड़े लेखक का तगमा टंग जाता है नाम के साथ ,पर इतनी ऊंचाई पर भी वो इंसान इतना सरल, इतना सहज .....
खैर ये वाकया अकेला नहीं....जब भी मिलती हूँ , हर बार बहुत कुछ ऐसा मिलता है मुझे .....
बात सवाल की थी ,उस दिन जब इमरोज़ जी जाने लगे -क्यूंकि ज्यादा बात नहीं हो पाई थी ,कुछ कहने लगी .......पर रोक दिया वहीँ .............बोले " तू जवाब बनी रह ,बस ......"......शायद उन्हें लगा कि मैं कोई सवाल करने वाली हूँ उस भीड़ की तरह.................नहीं , पर एक ? की तरह ये बात कई दिन ,शायद आज भी मेरे सामने है ....नहीं पूछ पाई ऐसा क्यूँ कहा ....किसलिए कहा ...जो कहा सादर सा उतर गया भीतर .....और अब इसके बाद तो कोई गुंजाईश ही नहीं सवाल की .....
बहुत सी बातें हैं ,मुलाकातें है ....कभी शब्दों में पिरो लेती हूँ ,कभी बादल सी रो लेती हूँ ,और कभी रूह को भिगो लेती हूँ ........................कुछ बातें अगली पोस्ट पर सांझा करूंगी ....इस बात को लिखे भी महीने हो गए ....पर ब्लॉग पे आज पोस्ट कर रही हूँ ,बस यूँ ही आज बैठे- बैठे मन हुआ कुछ अमृता की बात की जाये तो ...कह दिया ,
कुछ अमृता को समर्पित कवितायेँ अगले सप्ताह पोस्ट करूंगी ....दिवाली के बाद ....शुभकामनाएं
आप सभी को दीपावली की हार्दिक मंगल कामनाएं
सुन्दर संवेदनशील शब्दों में अपनी बात कही है।
जवाब देंहटाएंपरिवार सहित ..दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं
बेहतरीन पोस्ट....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संजय जी ,बात कह दी जैसे महसूस हुई ,आपको अच्छी लगी ,सची लगी तो प्रयास सफल रहा ....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुषमा जी ,आपको पोस्ट अच्छी लगी ,इमरोज़ जी के k-25 छोड़ने पर बहुत सवाल उठ रहे थे ,ज़ाहिर सी बात है,कुछ बातें मुझे जायज नहीं लगी, या कहूँ इमरोज़ जी को दुनिया जैसा कहना सच नही लगा ,ये पोस्ट उसी की वजह से कागज़ पर उतरी ....महत्व मुझे क्या कहा इसका नही ...उनके विचारों का है .....शुक्रिया फिर से ....
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