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मंगलवार, 28 मई 2013

सूरज उतर आया है ........

कलम में 
एक कुलबुलाहट 
मानो द्वार खुल रहे ....

एक रोशनाई 
अंधेरो में कैद 
आतुर 
बिखेरने को उजाले 

अहह! ये किसने द्वार खोला 

झरोखे की धूल को 
चीरती रौशनी कहती 
सूरज उतर आया है 

आँखें खोलो 
उतर जाने दो 
उस रूह में .....

 कैद है जो बरसों से 
इक अँधेरे मकान में .................


6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह रचना कल बृहस्पतिवार (30 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  2. कलम की यह कुलबुलाहट ही तो रचना को जन देती है ..बहुत सुन्दर!

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  3. कलम में
    एक कुलबुलाहट
    मानो द्वार खुल रहे ...अनुपम भाव

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  4. कलम चिड़िया की चोंच
    जो खटखटाती है साँकल मन का
    कहती है - खोलो द्वार , धूप में रख दो भीगे भीगे से विचार

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  5. आँखें खोलो
    उतर जाने दो
    उस रूह में .....
    -----
    अनुपम....अनुपम....

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