कलम में
एक कुलबुलाहट
मानो द्वार खुल रहे ....
एक रोशनाई
अंधेरो में कैद
आतुर
बिखेरने को उजाले
अहह! ये किसने द्वार खोला
झरोखे की धूल को
चीरती रौशनी कहती
सूरज उतर आया है
आँखें खोलो
उतर जाने दो
उस रूह में .....
कैद है जो बरसों से
इक अँधेरे मकान में .................
आपकी यह रचना कल बृहस्पतिवार (30 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंकलम की यह कुलबुलाहट ही तो रचना को जन देती है ..बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंकलम में
जवाब देंहटाएंएक कुलबुलाहट
मानो द्वार खुल रहे ...अनुपम भाव
कलम चिड़िया की चोंच
जवाब देंहटाएंजो खटखटाती है साँकल मन का
कहती है - खोलो द्वार , धूप में रख दो भीगे भीगे से विचार
आँखें खोलो
जवाब देंहटाएंउतर जाने दो
उस रूह में .....
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अनुपम....अनुपम....
kalam chale to dil bolta hai bahut sundar
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