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बुधवार, 6 नवंबर 2013

'जल' से ........

'पानी' का मैलापन 
बोला 'जल' से 
मत ठहरो ,बहते जाओ 
छोड़ घाट 
कल-कल से ………… 

बहना … तुम्हारी प्रवृति है  … 
रुकना पानी की  'नियति..........

नियति चक्र को पार कर  
मिट जायेगा मैलापन 
तब भाप सा उड़ता 
ठहर जाउंगा किसी 
श्वेत कण सा 
हिम शिखर पर  
....... 

सूरज का ओज 
देगा पिघला 
बह आऊंगा तुममे 
जल होकर ……

तब  मिल जाना तुम 
मुझे 
उसी तलहटी पर 
न हो पाऊँ अलग कभी 
घुल जाऊं ,तुममे 
तुम होकर  ………… !!!


7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक रचना...

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  2. सूरज का ओज
    देगा पिघला
    बह आऊंगा तुममे
    जल होकर ……

    तब मिल जाना तुम
    मुझे
    उसी तलहटी पर
    न हो पाऊँ अलग कभी
    घुल जाऊं ,तुममे
    तुम होकर ………… !!!
    वाह ... अनुपम भाव संयोजन

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  3. वाह! अति सुन्दर भावपूर्ण रचना । बधाई । सस्नेह

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  4. बिलकुल सही प्रवाह सब धो देता है |

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