'पानी' का मैलापन
बोला 'जल' से
मत ठहरो ,बहते जाओ
छोड़ घाट
कल-कल से …………
बहना … तुम्हारी प्रवृति है …
रुकना पानी की 'नियति..........
नियति चक्र को पार कर
मिट जायेगा मैलापन
तब भाप सा उड़ता
ठहर जाउंगा किसी
श्वेत कण सा
हिम शिखर पर
हिम शिखर पर
.......
सूरज का ओज
देगा पिघला
बह आऊंगा तुममे
जल होकर ……
तब मिल जाना तुम
मुझे
उसी तलहटी पर
न हो पाऊँ अलग कभी
घुल जाऊं ,तुममे
तुम होकर ………… !!!
प्रभावित करती रचना .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंसूरज का ओज
जवाब देंहटाएंदेगा पिघला
बह आऊंगा तुममे
जल होकर ……
तब मिल जाना तुम
मुझे
उसी तलहटी पर
न हो पाऊँ अलग कभी
घुल जाऊं ,तुममे
तुम होकर ………… !!!
वाह ... अनुपम भाव संयोजन
बहते जाओ,निखरते जाओ -
जवाब देंहटाएंवाह! अति सुन्दर भावपूर्ण रचना । बधाई । सस्नेह
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही प्रवाह सब धो देता है |
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति ...
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