आँसू सूखने का
भ्रम सा था
बहुत महीन हो गये
थे , और ठंडे ....
जैसे बर्फ पर रखा
हाथ , कुछ पल बाद
हो जाता है
हर अहसास से मुक्त ……
लेकिन ,अब ये ऊष्मा कैसी…! !
मोटी बड़ी बूंदों से
ढुलक आते है
बात बात पर ……
स्नेहिल स्पर्श से
बारिश की बूँद से
टप.…टप.…टप.... !!
भाव की ऊष्मा
से ,महक उठा
मिटटी का मन
शायद से .......
ह्रदय निर्मल सा हो गया है ... टप टप टप ... जल अमृत :)
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जवाब देंहटाएंवाह!!! बहुत सुंदर और प्रभावशाली रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है--
आशाओं की डिभरी ----------
आँसू सूखना ..बीतना सब भ्रम है,भाव कभी नही बीतता ,तभी तो वह भाव है,हमेशा अभिव्यक्ति हेतु प्रतीक्षारत .. अस्तित्व भाव का आश्रय है.. काफ्का अपनी डायरी में लिखते हैं -जीवन का सबसे गहन और भव्य सौन्दर्य अपनी पूरी सम्पूर्णता के साथ हम में से हरेक के अंदर 'प्रतीक्षा' रूप में छुपा रहता है,दृश्य से परे,गहरे अन्तस् में,सबसे बहुत दूर -अदृश्य.पर तब भी वो वहीं है.वह अमित्र,झिझकपूर्ण या बहरा नहीं है.अगर तुम अधिकार से,उसके सही शब्द से ,उसके सही नाम से उसे पुकारोगे तो वह आ जायेगा-उसी क्षण.
जवाब देंहटाएंबर्फ से कि उपमा शानदार है |
जवाब देंहटाएंभाव की ऊष्मा
जवाब देंहटाएंसे ,महक उठा
मिटटी का मन
शायद से ....... अनुपम भाव संयोजन
प्रभावशाली रचना
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