वो तिनके
चुने थे जो
रूह ने
आँखों से .....
हरी पत्तियों के
बीच कोई बसेरा
था नदी पार
इक सवेरा ....
अह! बिखेर दिए
अपने ही हाथों
उस रोज़ की
एक आँधी में .....
अब
चुनना होगा
तुम्हें
अपने हाथों से ...
मेरी अंतिम सीढ़ी
अंतिम बिछोने की
खातिर .......!!
{ सुना है आग की ..तिनकों से होती है अटूट दोस्ती ........
तभी तो देती है उस वक्त भी साथ ......
जब नही रहता कोई हाथ ..... निभाने के लिए ......}
तिनका और आग एक दूसरे के साथ ही ख़त्म हुए ...
जवाब देंहटाएंमार्मिक !
बहुत गहन और सुन्दर।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया इमरान ...
हटाएंसशक्त और प्रभावशाली रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, शुभकामनाये
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