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रविवार, 14 जुलाई 2013

तिनका तिनका ...आग.....


वो तिनके 

चुने थे जो 

रूह ने  

आँखों से .....



हरी पत्तियों के 

बीच कोई  बसेरा 

था नदी पार 

इक सवेरा  ....


अह! बिखेर दिए 

अपने ही हाथों 

उस रोज़ की 

एक आँधी में .....


अब 

चुनना होगा 

तुम्हें 

अपने हाथों से ...


मेरी अंतिम सीढ़ी 

अंतिम बिछोने की 

खातिर .......!!


{ सुना है आग की ..तिनकों से होती है अटूट दोस्ती ........

तभी तो देती  है उस वक्त भी साथ ......

जब नही रहता कोई हाथ ..... निभाने के लिए ......}

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