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गुरुवार, 4 जुलाई 2013

यूँ ही ...............{तीन लघु कवितायें }


{.....सड़क ....}

आज फिर 
उसी खाई में 
गिरा था 
एक पत्थर 
किसी ठोकर से .......

सड़क 
सिहर उठी 
तेज गति लिए 
लापरवाही से 
पड़ते पाँव की 
कल्पना मात्र से ...............!!

{ वक्त और स्थितियां खुद को  दोहराती क्यूँ हैं ....} 

...................*......................*..................................*........................
                                              [२]}

सपने 
फूल से .....

बिखरे 
धूल से........

चुभेंगे 
शूल से ......... 

{ यूँ ही सी कुछ बातें ....कह जाती कुछ आते जाते ....< अनन्या >}

..............*.........................*....................................*........................
[३]

आदमी 
हो जाता है 
कितना रहस्यमयी 
जब रख देता है 
कहकहों के बीच 
ज़िन्दगी की किताब ,खुली .......

लोग देखते रह जाते हैं 
कभी कहकहों को 
तो कभी  
खुली किताब को ...............!

{........हंस कर उड़ा देना हर फ़िक्र को ......ना लाना जुबां पर दर्दे ज़िक्र को .......}

[रिश्ते तो ...रंग हैं ...../ और बदलते रहना .....आदमी की फितरत ......]





   

7 टिप्‍पणियां:

  1. रिश्ते तो रंग है बदलते रहना आदमी की फितरत ...
    यूँ ही बहुत कुछ बयां हुआ रिश्तों और इंसानों का सफ़र जिंदगी की सड़क पर !!

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  2. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,अभार।

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  4. यूँ ही बहुत गहरी बात कह दी आपने । अति सार्थक । बधाई । सस्नेह

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  5. बेमानी यूँ ही कुछ होता है क्या
    समझने वाले पारखी नज़र रखें हो तो
    हार्दिक शुभकामनायें
    ~~

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  6. हुम्मं !! अच्छी कवितायें ... भीतर तक शब्द उकेरती ...
    ..................................

    मुझे सलाह मिल रही है कम शब्दों में अपनी बात लिखने की ... पर ये बहुत मुश्किल है मेरे लिए ... आपकी इन कविताओं में वो बात है ..

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